________________
2. वेदना स्कन्ध - सुख - दुःख और असुख - दुःख रूप (जो न सुख रूप हो, न दुःख रूप हो) वेदन को वेदना स्कन्ध कहते है । यह वेदना पूर्वकृत कर्म विपाक से होती है ।
3.
संज्ञा स्कन्ध - विभिन्न संज्ञाओं के कारण वस्तु विशेष को पहचानने के लक्षण वाला स्कन्ध संज्ञा स्कन्ध कहलाता है। संज्ञा वस्तु- - विशेष का बोधक
शब्द है, जैसे अश्व, गौ आदि ।
-
4. संस्कार स्कन्ध
पुण्य, पापादि धर्म समुदाय को संस्कार स्कन्ध
कहते है ।
5. विज्ञान स्कन्ध - जो जानने के लक्षण वाला है, उस रूपविज्ञान, रसविज्ञान आदि विज्ञान समुदाय को विज्ञान स्कन्ध कहते है ।
पंचस्कन्धवादियों के अनुसार इन पाँचों स्कन्धों से भिन्न या अभिन्न सुखदु:ख, इच्छा, द्वेष, ज्ञानादि का आधारभूत आत्मा नहीं है, न स्कन्धों से भिन्न आत्मा का प्रत्यक्ष से ही अनुभव होता है। उस आत्मा के साथ अविनाभावी सम्बन्ध रखने वाला कोई निर्दोष लिंग भी गृहीत नहीं होता, जिससे कि वह अनुमान द्वारा सिद्ध हो सके । प्रत्यक्ष तथा अनुमान के अतिरिक्त और कोई तीसरा अविसंवादी प्रमाण नहीं है । अतः पञ्चस्कन्धों से भिन्न आत्मा नाम की कोई चीज नहीं है।
बौद्ध सम्मत ये पाँचों स्कन्ध क्षणयोगी है। क्षणमात्र अवस्थित रहते है, दूसरे ही क्षण नष्ट हो जाते है। ये स्कन्ध न तो कुटस्थनित्य (सदा एक से रहने वाले) है, न ही कालान्तर स्थायी ( दो चार क्षण ठहरने वाले), परन्तु जल प्रवाह की तरह प्रतिक्षण में परिणाम प्राप्त करते रहते है ।' स्कन्धों के क्षणिकत्व को सिद्ध करने के लिये बौद्धमतवादी अनुमान प्रमाण का भी प्रयोग करते है - स्कन्ध क्षणिक है, क्योंकि वह सत् है ।
जो-जो सत् होता है, वह वह क्षणिक होता है । जैसे मेघमालाएँ क्षणिक है, क्योंकि वे सत् है । उसी प्रकार सभी सत् पदार्थ क्षणिक है।
सत् का लक्षण - सत् का लक्षण है- अर्थक्रियाकारित्व।' वस्तु की क्रिया ही अर्थक्रिया है, जैसे अग्नि का जलाना, पानी का प्यास बुझाना। जो वस्तु की क्रिया करता है, वही वस्तु है । स्पष्ट है कि वह क्रिया करना वस्तु का लक्षण है । क्रियावान् ही वस्तु अर्थात् सत् है । अत: सत् पदार्थ में नित्यत्व या स्थायित्व घटित नहीं हो सकता क्योंकि नित्य पदार्थ अकर्त्ता या अक्रिय होता है । अत:
262 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org