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सत्रहवीं गाथा में पञ्चस्कन्धवादी कतिपय बौद्धों की क्षणिकवाद की मान्यता प्रतिपादित है तो अठारहवीं गाथा में कुछ बौद्धों के चातुर्धातुकवाद का वर्णन है, जो क्षणिकवाद का ही दूसरा रूप है। इसका प्रतिपादन शास्त्रकार ने इस प्रकार किया है
___ कुछ बाल अज्ञानी क्षणमात्र स्थिर रहने वाले पाँच स्कन्ध बताते है। उनके अनुसार इन पाँच स्कन्धों से भिन्न या अभिन्न, कारण से उत्पन्न (सहेतुक) या अकारण उत्पन्न (अहेतुक) आत्मा नहीं है।
धातुवादी बौद्ध पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये चतुर्धातु जब शरीर के रूप ॥ में परिणत होकर एकाकार हो जाते है, तब इनकी जीव संज्ञा होती है, ऐसा मानते।
है।'
1. क्षणिकवादी पञ्चस्कन्धवाद
शास्त्रकार 'वयंतेगे' पद द्वारा पञ्चस्कन्ध को ही आत्मा मानने वाले बौद्धों की ओर संकेत करते है अर्थात् सभी बौद्ध मत वाले ऐसा नहीं मानते। चूर्णिकार के अनुसार बौद्ध आत्मा को पञ्चस्कन्धों से भिन्न या अभिन्न- दोनों को नहीं मानते।
उस समय दो दृष्टियां प्रचलित थीं। कुछ दार्शनिक आत्मा को शरीर से भिन्न मानते थो तो कुछ अभिन्न। बौद्ध इन दोनों दृष्टियों से सहमत नहीं थे। आत्मा के विषय में उनका अभिमत था कि वही जीव है और वही शरीर है - ऐसा नहीं कहना चाहिए। जीव अन्य है और शरीर अन्य है - ऐसा भी नहीं कहना चाहिए।
__ बौद्ध का दृष्टिकोण यह है कि स्कंधों का भेदन होने पर यदि पुद्गल आत्मा का भेदन होता है तो उच्छेदवाद प्राप्त हो जाता है। स्कंधों का भेदन होने पर यदि पुद्गल का भेदन नहीं होता है तो पुद्गल शाश्वत हो जाता है। वह निर्वाण जैसा बन जाता है। उक्त दोनों- उच्छेदवाद तथा शाश्वतवाद से बुद्ध सम्मत नहीं है, इसलिए यह नहीं कहना चाहिए कि स्कंधों से पुद्गल भिन्न है और यह भी नहीं कहना चाहिए कि स्कंधों से पुद्गल अभिन्न है। ___ बौद्ध पिटकों में पाँच स्कन्ध इस प्रकार प्रतिपादित है -
1. रूप स्कन्ध - पृथ्वी, जल, तेज, वायु ये चार धातु तथा रूप आदि विषय रूपस्कन्ध कहलाते है। भूत और उपादान के भेद से रूपस्कन्ध दो प्रकार
का होता है। ... सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 261
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