________________
के इस मत को मिथ्या बताया गया है। प्रत्येक पदार्थ द्रव्य रूप से सत् तथा पर्याय रूप से असत् है। इस प्रकार सदसत् की यह व्याख्या अनेकान्त की ही फलश्रुति है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 24 : एकेषां वेदवादिनां सांख्यानां शैवाधिकारिणाञ्चेतद आख्यातम्। सूत्रकृतांग चूर्णि पृष्ठ - 28 : इदाणिं आयच्छट्ठाऽफलवादिति। 'This is the opinion expressed by charak' The sacred book of the east Vol. XLV Page No. 237 उदान पृ. 146 : सन्ति पनेके समण ब्राह्मणा एवं वादिनो एवं दिविनो-सस्सत्तो अत्ता च लोको च, इदमेव मोघवंति। सूत्रकृतांग सूत्र, 1/1/1/15-16 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 24 बौद्ध दर्शन : जातिरेव हि भावानां विनाशे हेतुरिष्यते।
यो जातश्च न च ध्वस्तो, नश्येत पश्चात् स केन च? सूयगडो, 2/1/27, 28 गीता अ.-2/23-24 : नैनं छिन्दन्ति शास्त्रणि, नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारन्तः॥ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।
नित्यं सर्वगत: स्थाणुरचलोऽयं सनातनः। 10. गीता अ. 2/16 - 24 : नासतो विद्यते भावो, ना भावो जायते सतः।
उभयोपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः।। सांख्यकारिका : असदकरणादुपादानग्रहणात सर्वसम्भावाऽभावात।
___ शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम्॥ 12. अ). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 24
ब). सूत्रकृतांग - अमरसुख बोधिनी व्याख्या, प्र.श्रु. पृ. 113/114
6. क्षणिकवाद सूत्रकृतांग सूत्र में आत्मषष्ठवाद के पश्चात् क्षणिकवाद का खण्डन किया गया है। यह क्षणिकवाद दो रूपों में उल्लिखित है। चूर्णिकार ने इसे शाक्यदर्शन का मत कहा है परन्तु वृत्तिकार ने पञ्चमहाभूतवादी, तज्जीव-तच्छरीरवादी तथा सांख्य आदि मोक्षवादियों का ग्रहण किया है।'
260 / सत्रकतांग सत्र का टार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org