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5. आत्मषष्ठवाद सूत्रकृतांग सूत्र के (प्र. श्रु.) प्रथम समय अध्ययन की 16वीं तथा 17वीं गाथाद्वय में आत्मषष्ठवाद का उल्लेख किया गया है। जो पाँचभूतों के अतिरिक्त आत्मा को भी मानते है, वे आत्मषष्ठवादी कहलाते है। वृत्तिकार ने इसे वेदवादी, सांख्य तथा शैवाधिकारियों (वैशेषिको) का मत बताया है। चूर्णि में इस मत को अफलवाद भी कहा है। प्रो. हर्मन जेकोबी' इसे चरक मत मानते है। बौद्ध ग्रन्थ 'उदान' में आत्मा और लोक को शाश्वत मानने वाले कुछ श्रमण-ब्राह्मणों का उल्लेख प्राप्त होता है।
सूत्रकृतांग में वर्णित आत्मषष्ठवाद के अनुसार इस जगत में पाँच महाभूत तथा छट्ठा आत्मा है। ये छ: पदार्थ सहेतुक (सकारण) या अहेतुक (अकारण) दोनों ही प्रकार से नष्ट नहीं होते। न ही असत् वस्तु की कभी उत्पत्ति होती है। सभी पदार्थ सर्वथा नियतिभाव (नियत्व) को प्राप्त होते है। आत्मा तथा लोक नित्य (शाश्वत) है।'
आत्मषष्ठवाद की मुख्य मान्यताएँ - शास्त्रकार ने इन दो गाथाओं में आत्मषष्ठवाद की मुख्य 5 मान्यताओं को स्पष्ट किया है - (1) पाँच महाभूत अचेतन है तथा छट्ठा पदार्थ आत्मा है, जो सचेतन है। (2) आत्मा तथा लोक, दोनों शाश्वत है। (3) छहों पदार्थ सहेतुक या अहेतुक, दोनों ही प्रकार से विनष्ट नहीं होते। (4) असत् की कभी उत्पत्ति नहीं होती तथा सत् का कभी नाश नहीं होता। (5) सभी पदार्थ सर्वथा नित्य है।
'आत्मषष्ठवादी आत्मा की नित्यता सिद्ध करने के लिये कहते है कि भूचैतन्यवादियों का यह कथन असंगत है कि आत्मा अनित्य है। आत्मा को सर्वथा अनित्य मानने से बंध तथा मोक्ष की व्यवस्था नहीं होगी, अत: आत्मा आकाश की तरह सर्वव्यापी तथा अमूर्त होने से नित्य है। इस प्रकार पंचमहाभूत रूप लोक भी अपने स्वभाव तथा स्वरूप से च्यूत न होने के कारण अविनाशी, नित्य तथा शाश्वत है।
बौद्ध दर्शन में आत्मवाद की धारणा अनित्यवाद पर स्थित है। आत्मा केवल शरीर घटक धातुओं का समुच्चय मात्र है, जिसका प्रतिक्षण विनाश एवं उत्पाद होता है। इसके अतिरिक्त आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। पदार्थ की उत्पत्ति के पश्चात् तत्काल ही निष्कारण विलय या विनाश क्षणिकवाद है। इस
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 255
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