SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपलब्ध नहीं होते । पण्डित दलसुख मालवणिया ने इस मत की तुलना पुरणकस्सप के मत से की है। इसिभासियाई सूत्र के 19 वे उत्कल अध्ययन में भी इसी प्रकार के सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है। इसके आधार पर यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि उत्कलाचार्य ही इस मत के उद्गाता रहे हों । 1. 2. 3. 4. 5. 6. संदर्भ एवं टिप्पणी सूयगडो, 1/1/1/11-12 वही, 2/1/15-17 दीघनिकाय, 1/2/4/22 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 21 बृहदारण्यकोपनिषद्, अ. 4, ब्रा. 6, श्लोक "प्र (वि) ज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थायातान्येवानुविनश्यति, न प्रेत्यसंज्ञाऽस्तीति ।” - 13 (अ) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 22 (ब) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या प्र.श्रु., पृ. 100-102 Jain Education International 4. अकारकवाद (अक्रियावाद) सूत्रकृतांग सूत्र में आत्मा के अकारकवाद (अक्रियावाद) का स्वरूप बताया गया है। चूर्णिकार ने इसे सांख्यदर्शन सम्मत बताया है।' व्याकरण शास्त्र के अनुसार जो क्रिया के प्रति स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता है परन्तु अकारकवाद के अनुसार आत्मा अमूर्त, नित्य तथा सर्वव्यापी है । अत: वह कर्ता नहीं हो सकता, क्योंकि जो अमूर्त, नित्य तथा सर्वव्यापी होता है, वह क्रियाशून्य होता है। - सांख्यदर्शनमान्य आत्मा अकर्ता, निर्गुण (सत्व, रजस्, तमस्, त्रिगुणातीत) भोक्ता तथा नित्य है । अत: वह स्वतन्त्रकर्त्ता नहीं हो सकता । आत्मा अकर्ता इसलिये भी है कि वह विषय - सुख आदि तथा इनके कारण पुण्य-पापादि कर्मों को नहीं करता। सूत्रकृतांग के अनुसार आत्मा स्वयं न कुछ क्रिया करती है, न दूसरों से करवाती है। चूँकि समस्त क्रिया नहीं करती है, अत: आत्मा अकारक है । ऐसी प्ररूपणा अकारकवादी करते है । 248 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy