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शरीर का भोक्ता आत्मा
इस शरीर का भोक्ता कोई-न-कोई अवश्य है, क्योंकि यह शरीर ओदन आदि के समान भोग्य पदार्थ है । इन्द्रियाँ और मन इस शरीर के भोक्ता इसलिए नहीं हो सकते, क्योंकि वे स्वयं शरीर के ही अंगभूत है। जैसे ओदन आदि भोग्य पदार्थों का भोक्ता कोई न कोई अवश्य होता है । इसी प्रकार इस शरीर का भी कोई भोक्ता अवश्य है और वह है आत्मा ।
यहाँ नास्तिक मतवादी यह तर्क प्रस्तुत करते है कि आत्मा की सिद्धि के लिए प्रस्तुत किये गये अनुमानों में जो कुम्भकार आदि का हेतु दिया है, वह विरूद्ध है, क्योंकि कुम्भकार आदि कर्ता मूर्त्त, अनित्य तथा अवयवी है, जबकि आत्मा अमूर्त, नित्य और संहतरूप ही सिद्ध होता है। इन मिथ्यावादियों का यह कथन युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि जैनदर्शन के अनुसार संसारी आत्मा कर्म से परस्पर मिलकर शरीर के साथ सम्बद्ध होने के कारण कथंचित् मूर्त, अनित्य तथा अवयवी भी माना जाता है।
परलोकगामी आत्मा
तज्जीव- तच्छरीरवादियों का यह मत भी मिथ्या है कि आत्मा परलोकगामी नहीं है । इस अनुमान से आत्मा का परलोकगमन सिद्ध होता है- तत्काल जन्में हुए शिशु को माता के स्तनपान की इच्छा होती है। वह इच्छा पहलेपहल नहीं हुई है, किन्तु वह उसके पूर्व की इच्छा से उत्पन्न हुई है, क्योंकि वह इच्छा है। जो-जो इच्छा होती है, वह अन्य इच्छापूर्वक ही होती है, जैसे कुमार की इच्छा। इसी प्रकार बालक का विज्ञान, अन्य विज्ञानपूर्वक है, क्योंकि वह विज्ञान है। जो-जो विज्ञान है, वह अन्य विज्ञानपूर्वक ही होता है, जैसे कुमार का विज्ञान । तत्काल जन्मा हुआ बच्चा जब तक 'यह वही स्तन है' इस प्रकार का प्रत्यभिज्ञान नहीं कर लेता, तब तक रोना बन्द कर वह स्तन में मुख नहीं लगाता । इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि बालक में कुछ न कुछ प्रत्यभिज्ञान (विज्ञान) अवश्य होता है। वह यत्किचित विज्ञान अन्य विज्ञानपूर्वक होता है और वह अन्य विज्ञान पूर्वजन्म का ज्ञान ही हो सकता है। अतः यह सिद्ध होता है कि परलोक में जानेवाला तत्व आत्मा अवश्य है ।
तात्पर्यार्थ यह है कि जिस पदार्थ का जिसने कभी उपभोग नहीं किया, उसकी इच्छा उसमें नहीं होती है । उसी दिन का जन्मा हुआ बालक, जिसने
246 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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