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________________ 2. मूंज (घास) से शलाका को अलग निकालकर दिखाया जा सकता है। 3. पुरुष-माँस से अस्थि को पृथक करके दिखाया जा सकता है। 4. हथेली से ऑवले को अलग दिखाया जा सकता है। 5. दही से नवनीत को अलग करके दिखाया जा सकता है। 6. तिलों से तेल अलग निकालकर दिखाया जा सकता है। 7. ईख से रस को अलग निकालकर दिखाया जा सकता है। 8. अरणी की लकड़ी से आग को अलग करके दिखाया जा सकता है। तज्जीव-तच्छरीरवादी अपने मत को पुष्ट करने के लिए उपरोक्त आठ प्रतीकात्मक दृष्टान्तों को प्रयुक्त करते हुए यह कहते है कि जैसे म्यान से तलवार का, दही से मक्खन का, माँस से हड्डी का, अरणी से आग का, तिल से तेल का, मूंज से सलाका का और ईख से रस का अलग अस्तित्व है, जिसका हमें प्रत्यक्ष अनुभव होता है, इस प्रकार शरीर से भिन्न जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व का न हमें प्रत्यक्ष होता है, न उसका भिन्न संवेदन। अत: शरीर से भिन्न जीव नहीं है। बौद्ध साहित्य में उपलब्ध अजितकेशकंबल के दार्शनिक विचारों की उक्त श्लोक-युगल एवं द्वितीय श्रुतस्कन्धगत विचारों से तुलना की जाय तो सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि यहाँ अजितकेशकंबल के विचार ही प्रतिपादित हुए है। दीघनिकाय के अनुसार अजितकेशकंबल के दार्शनिक विचार इस प्रकार है - ___........ दान नहीं है, यज्ञ नहीं है, आहुति नहीं है, सुकृत् और दुष्कृत् कर्मों का फल-विपाक नहीं है। न यह लोक है, न परलोक। न माता है और न पिता। औपपातिक (देव) सत्व भी नहीं है। लोक में सत्य तक पहुँचे हुए तथा सम्यक् प्रतिपन्न श्रमण-ब्राह्मण नहीं है, जो इस लोक और परलोक को स्वयं जानकर, साक्षात् कर बतला सके। प्राणी चार महाभूतों से बना है। जब वह मरता है, तब (शरीरगत) पृथ्वी तत्व पृथ्वीकाय में, पानी तत्व अपकाय में, अग्नि तत्व तेजस्काय में और वायु तत्व वायुकाय में मिल जाते है। इन्द्रियाँ आकाश में चली जाती है। चार-पुरुष मृत व्यक्ति को खाट पर ले जाते है। जलाने तक उसके चिह्न जान पड़ते है। फिर हड्डियाँ कपोत वर्ण वाली हो जाती है। आहुतियाँ राख मात्र रह जाती है। ‘दान करो' यह मूल् का उपदेश है। जो आस्तिकवाद का कथन करते है, वह उनका कहना तुच्छ और झूठा विलाप है। 242 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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