________________
देवदत्तो दिवा न भुक्ते।' यह मोटा-ताजा देवदत्त दिन में नहीं खाता है। बिना खाये कोई मोटा नहीं होता, यह सभी प्रमाणों से निश्चित है। पर यहाँ देवदत्त का दिन में खाने का निषेध किया है, साथ ही उसे मोटा भी कहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह रात्रि में खाता है। यहाँ देवदत्त की रात में भोजन की बात नहीं कही गयी है फिर भी अर्थापत्ति प्रमाण से उसका ग्रहण कर लिया जाता है। इसी प्रकार दीवार आदि पर लेप्य कर्म वगैरह में पृथ्वी, जलादि पंचभूत समुदाय होते हुए भी सुख-दु:ख, इच्छा आदि क्रियाएँ नहीं होती। इससे यह निश्चित होता है कि इन क्रियाओं का समवायी कारण पंचभूतों से भिन्न कोई दूसरा पदार्थ है, और वही पदार्थ आत्मा है। इस प्रकार अनुमानादि मूलक अर्थापत्ति प्रमाण से भी आत्मा की सिद्धि होती है। आगम प्रमाण से आत्मा की सिद्धि
आगम प्रमाण से भी आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि होती है। अत्थि मे आया उववाइए' परलोक में जाननेवाला मेरा आत्मा है।20 ‘स आत्मा तत्त्वमसि श्वेतकेतो' श्वेतकेतो ! वह आत्मा तुम्ही हो। इत्यादि आगम प्रमाण आत्मा के अस्तित्व को स्थापित करते है। देह के विनाश से देही का विनाश मानना अयुक्तिसंगत
चार्वाक मतानुसार 'अह तेसिं विणासेण विणासो होइ देहिणो' पंच महाभूत का विनाश होने पर देही का भी विनाश हो जाता है। परन्तु ऐसा मानने पर निम्नलिखित तीन दोषापत्तियाँ आ पड़ेगी -
1.केवलज्ञान, मुक्ति या सिद्धि की प्राप्ति के लिये यम, नियम, प्राणायम, तप, स्वाध्याय, ध्यान, धारणा, समाधि रूप किया जानेवाला प्रखर पुरुषार्थ और साधना निष्फल हो जायेंगे।
2.किसी भी व्यक्ति को दया, दान, सेवा, परोपकार, लोक-कल्याण आदि पुण्यजनक शुभकर्मों का फल नहीं मिलेगा।
3.हिंसा, झूठ, चोरी, डकैती आदि अपराध करनेवाले लोक नि:शंक होकर पापकर्म करेंगे। क्योंकि जब उनकी आत्मा, शरीर तथा पापकर्म यहीं नष्ट हो जायेंगे तब परलोक में उन पापकर्मों का भुगतान करने के लिए उनकी आत्मा को नरकादि दुर्गतियों में नहीं जाना पड़ेगा। इस प्रकार संसार में अव्यवस्था, अनैतिकता और अराजकता का साम्राज्य छा जायेगा। 232 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org