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________________ 6. व्यवधान - किसी दिवार, पर्दे आदि का व्यवधान होने पर पदार्थ का प्रत्यक्ष नहीं होता परन्तु इससे पदार्थ का नास्तित्व सिद्ध नहीं होता। 7. अभिभव - सूर्य के उदय होने पर चाँद-तारे अभिभव (दब जाने) के कारण दिखायी न देने मात्र से उनका अभाव सिद्ध नहीं हो सकता। 8. सजातीय पदार्थों के साथ सम्मिश्रण - जलाशय में लोटे का पानी डाल देने पर लोटे के पानी का पृथक् ग्रहण नहीं हो सकता तथापि उसका अस्तित्व स्वत: सिद्ध है। अतीन्द्रिय पदार्थों की अस्तित्वसिद्धि चार्वाकमतानुयायी स्वर्ग, नरक, मोक्षादि अतीन्द्रिय पदार्थों के अस्तित्व का निषेध करते है। यहाँ वृत्तिकार ने यह प्रश्न किया है कि आप किस प्रमाण के आधार पर इनका निषेध करते है। क्या आप स्वर्ग को जानते है ? यदि जानते है तो प्रत्यक्ष से या अन्य किसी प्रमाण से ? प्रत्यक्ष से तो अतीन्द्रिय पदार्थों को जाना नहीं जा सकता क्योंकि वे इसीलिए अतीन्द्रिय कहलाते है कि उनका इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं होता। तथैव प्रत्यक्ष प्रमाण से स्वर्गादि का निषेध नहीं किया जा सकता। क्योंकि पहले यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि वह प्रत्यक्ष स्वर्गमोक्षादि में प्रवृत्त होकर उनका निषेध करता है या निवृत्त होकर ? स्वर्ग या मोक्ष में प्रवृत्त होकर तो प्रत्यक्ष उनका निषेध कर नहीं सकता क्योंकि प्रत्यक्ष का अभाव-विषयक वस्तु के साथ विरोध होता है। चार्वाक मत में जब स्वर्ग, मोक्ष है ही नहीं, तब उनमें प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति कैसे हो सकती है ? चूँकि प्रत्यक्ष रूप से प्रवृत्ति नहीं हो सकती, अत: प्रत्यक्ष प्रवृत्त होकर अतीन्द्रिय पदार्थों का निषेध नहीं कर सकता। इसी प्रकार प्रत्यक्ष निवृत्त होकर मोक्षादि का निषेध करे, यह भी युक्ति संगत नहीं है। क्योंकि स्वर्ग-मोक्षादि का जब प्रत्यक्ष ही नहीं है, तब प्रत्यक्ष से उनका अनिश्चय नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त जिन्होंने स्वर्गादि को नहीं जाना, उन्हें उनके अभाव का बोध होना असंगत है। क्योंकि अभाव के ज्ञान में प्रतियोगी का ज्ञान कारण होता है। जिस पुरुष ने घट को नहीं जाना, वह घटाभाव को भी नहीं जान सकता। घट को जाननेवाला ही घट का निषेध कर सकता है। चार्वाक मत में जब स्वर्गमोक्ष है ही नहीं, तब उनका निषेध कैसे समीचीन हो सकता है ? क्योकि निषेध उसी का किया जा सकता है, जिसका अस्तित्व कहीं न कहीं, किसी न किसी 230 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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