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के संयोग से चैतन्य उत्पन्न नहीं होता। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा की सिद्धि
पंचमहाभूतवाद का खण्डन करने के साथ वृत्तिकार ने ऐसे अनेक प्रमाणों का उल्लेख किया है, जो आत्मा की सिद्धि करते हैं। वस्तु का प्रत्यक्ष न होना वस्तु के अभाव का बोधक नहीं है
भूतवादी एकमात्र प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते है। यदि प्रत्यक्ष ही सत्य है, तब तो घर से भागे हुए पुत्र का प्रत्यक्ष न होने से उसके भी अभाव (मृत्यु) का प्रसंग आयेगा। परन्तु ऐसा व्यवहारिक जीवन में नहीं देखा जाता। क्योंकि किसी वस्तु का केवल इन्द्रियों से प्रत्यक्ष न होने मात्र से अभाव सिद्ध नहीं हो सकता। प्रत्यक्ष से उसका अभाव तभी सिद्ध होता है, जब वह वस्तु प्रत्यक्ष से जानने योग्य हो, फिर भी न जाना जाता हो। तात्पर्य यह है कि यदि वस्तु का अप्रत्यक्ष वस्तु का अभाव सिद्ध करता हो तो घर के अन्दर रखी हुई वस्तु का भी दीवार आदि की ओट के कारण प्रत्यक्ष न होने से अभाव सिद्ध हो जायेगा।
वास्तव में अतिसमीपता, अतिदूरी आदि बाधकों से रहित प्रत्यक्ष जब किसी वस्तु को नहीं जानता है, तभी उस वस्तु के अभाव का बोध होता है। निम्नोक्त कारणों में प्रत्यक्ष रूप से विषय का ग्रहण न होने से उनका अभाव सिद्ध नहीं होता -15
1. अतिदूरी - आकाश में उड़ रहे पक्षी का अत्यन्त दूरी के कारण न दिखने मात्र अभाव नहीं हो सकता।
2. अतिसामिप्य - आँख में लगा अंजन अतिनिकट होने से दिखायी नहीं देता, परन्तु इससे क्या अंजन का अभाव सिद्ध हो जायेगा ?
3. इन्द्रियक्षति - अन्धे या बहरे के न देखने और न सुनने मात्र से रूप या शब्द का अभाव नहीं होता।
4. अन्यमनस्कता - मन किसी अन्य विषय में एकाग्र होने पर प्रचण्ड प्रकाश होने पर भी सामने पड़ी हुई वस्तु का प्रत्यक्ष नहीं होता पर इससे वस्तु का अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता।
5. सूक्ष्मता - चित्त की एकाग्रता होने पर भी परमाणु जैसा सूक्ष्म पदार्थ प्रत्यक्ष का विषय नहीं होता परन्तु परमाणु का अस्तित्व तो विद्यमान ही रहता
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 229
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