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पदार्थों से बना है। जो-जो अचेतन गुण वाले पदार्थों से बना होता है, वह सब अचेतन गुण वाला होता है। जैसे- घट, पट आदि।
चार्वाक मत में शरीर और इन्द्रियों के अतिरिक्त 'आत्मा' नहीं माना गया है। अत: आत्मा को द्रष्टा न मानने के कारण चक्षु आदि इन्द्रियों को ही द्रष्टा मानना पडा है। परन्तु पांचों इन्द्रियों के उपादान कारण ज्ञानरूप न होने से इन्द्रियाँ चैतन्य गुण या ज्ञान गुण वाली नहीं हो सकती।
अत: आत्मा अवश्य है, क्योंकि समस्त इन्द्रियों के द्वारा जाने हुए पदार्थों का सम्मेलनात्मक ज्ञान आत्मा के सिवाय किसी को हो नहीं सकता। 'मैंने पाँचों ही विषयों को जाना' यह सम्मेलनात्मक ज्ञान है। प्रत्येक इन्द्रिय अपने-अपने विषय का प्रत्यक्ष करती है, जैसे- आँख रूप को ही देखती है, स्पर्श या शब्दादि का ज्ञान नहीं कर सकती। इसी प्रकार स्पर्शेन्द्रिय स्पर्श का ही ज्ञान करती है, रस या गंध का नहीं। अत: इन्द्रियों के द्वारा जाने गये समस्त विषयों और अर्थों को प्रत्यक्ष करने वाला एक आत्मा निश्चय ही है। पाँच खिड़कियों के समान पाँच इन्द्रियाँ उसके प्रत्यक्ष साधन है, जिनसे प्राप्त हुए ज्ञान को इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी कालान्तर में वह स्मरण कर लेता है।"
ज्ञानवान् इन्द्रियाँ नहीं, आत्मा है
यदि इन्द्रियों को ही ज्ञानवान् माना जाय तो प्रश्न होता है कि सब इन्द्रियाँ मिलकर ज्ञान का आधार है या पृथक्-पृथक् ? यदि कहे कि सब इन्द्रियाँ मिलकर आधार है, तब तो एक इन्द्रिय का नाश होने पर ज्ञानवान् का ही नाश हो जायेगा। वहाँ फिर ज्ञान की उत्पत्ति ही नहीं होगी क्योंकि ज्ञान के आधार का नाश हो चुका है। यदि कहे कि पृथक्-पृथक् एक-एक इन्द्रिय ज्ञान का आधार है, तब तो किसी कारणवश नेत्र के नष्ट होने पर पहले देखे हुए रूप का स्मरण होना चाहिए किन्तु वह नहीं होता क्योंकि अनुभवकर्ता (नेत्र) अब विद्यमान नहीं है।
तात्पर्यार्थ यह है कि जिस अधिकरण में जिस विषय का अनुभव उत्पन्न होता है, उसी अधिकरण में पूर्वोत्पन्न अनुभव से प्राप्त संस्कार के बल से कालान्तर में स्मरण उत्पन्न होता है। ऐसा नहीं होता कि अनुभव एक करे और स्मरण कोई दूसरा करे। यदि दूसरे के द्वारा अवलोकित पदार्थ का स्मरण दूसरे को होने लगे, तब तो सर्वज्ञ के द्वारा देखे गये पदार्थों का स्मरण हम लोगों को हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसा कदापि नहीं होता। चूँकि दूसरे के द्वारा देखे गये पदार्थ
सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 227
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