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के अतिरिक्त किसी आत्मा आदि तत्त्व का अस्तित्व नहीं मानते। अत: प्रस्तुत वाद को लोकायतिक मत कहा गया है।
पृथ्वी, अप, तेज, वायु और आकाश ये पाँचभूत सर्वलोकव्यापी है, अत: इन्हें 'महाभूत' कहा गया है। शरीर में जो कठोर भाग है, वह पृथिविभूत है। शरीर में जो कुछ रूप या द्रवभाग है, वह अपभूत है। शरीर में जो कुछ उष्ण स्वभाव या शरीराग्नि है, वह तेजस् भूत है। शरीर में जो चल स्वभाव या उच्छ्वासनिश्वास है, वह वायुभूत है। शरीर में जो शुषिर स्थान है, वह आकाशभूत है।'
पंचभूतों से चैतन्य की उत्पत्ति - ये पंचमहाभूत सर्वजन प्रत्यक्ष होने से महान है। इस विश्व में इनके अस्तित्व से न कोई इन्कार कर सकता है, न ही इनका खण्डन कर सकता है। दूसरे मतवादियों द्वारा कल्पित, पाँचभूतों से भिन्न, परलोक में जानेवाला, सुख-दु:खादि भोगनेवाला आत्मा नामक कोई दूसरा पदार्थ नहीं है। पृथ्वी आदि पंचभूतों के शरीर रूप में परिणत होने पर इन्हीं भूतों से अभिन्न ज्ञान-स्वरूप एक आत्मा उत्पन्न होता है।
लोकायतिक मतानुसार, जिस प्रकार गुड, महुआ आदि मद्य सामग्री के संयोग से मादक-शक्ति उत्पन्न होती है, उसी प्रकार पंचभूतों के विशिष्ट संयोग से चैतन्य शक्ति की उत्पत्ति होती है। वह चैतन्य-शक्ति पंचभूतों से भिन्न नहीं है, क्योंकि वह पंचमहाभूतों का ही कार्य है। जैसे- पृथ्वी से उत्पन्न घटादि कार्य पृथ्वी से भिन्न नहीं है, वैसे ही पंचभूतों से भिन्न आत्मा नहीं है, क्योंकि उन्हीं में से चैतन्य-शक्ति प्रकट होती है। जिस तरह जल में बुलबुले उत्पन्न और विलीन होते रहते है, उसी तरह जीव भी इन्हीं भूतों से उत्पन्न होकर इन्हीं में विलीन होते रहते है।
प्रस्तुत सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम पौण्डरीक अध्ययन में भी पञ्चमहा-भूतवाद का वर्णन पाया जाता है। यह सत्य है कि भाषा एवं शैली की दृष्टि से प्रथम श्रुतस्कन्ध अधिक प्राचीन तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध अपेक्षाकृत अर्वाचीन माना जाता है, तथापि द्वितीय श्रुतस्कन्ध में प्राप्त दार्शनिक विचारों का विश्लेषण भी गम्भीर है।
प्रथम श्रुतस्कन्ध में प्रस्तुत वाद का नामोल्लेख नहीं किया गया है जबकि द्वितीय श्रुतस्कन्ध में इसे पंचमहाभूतवाद बताया गया है। वहाँ चार्वाक या बृहस्पति जैसे किसी भी शब्द का प्रयोग नहीं है। वर्तमान में चार्वाक या बृहस्पति के सिद्धान्तसूत्र मिलते है, उनमें चार भूतों-पृथिवी, अप, तेऊ, वायु का ही उल्लेख मिलता 224 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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