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________________ उदक नहीं । गौतम - कोई परिव्राजक निर्ग्रन्थ प्रवचन में अनुरक्त बनकर श्रामण्य को स्वीकार करता है। कुछ वर्ष साथ रहने के पश्चात् वह निर्ग्रन्थों से अलग होकर परिव्राजक बन जाता है। यह वही व्यक्ति है, जिसके साथ श्रमण अवस्था से पहले भोजन आदि का सम्बन्ध नहीं था और श्रमण अवस्था में भोजन आदि का सम्बन्ध था। अब वही व्यक्ति है, जिसके साथ अश्रमण अवस्था में भोजन आदि. सम्बन्ध नहीं है। पहले अश्रमण था, बाद में वह श्रमण हुआ, अब अश्रमण है । क्या श्रमण निर्ग्रन्थ उस अश्रमण के साथ भोजन आदि का सम्बन्ध रखते है? उदक - नहीं । गौतम - हे उदक ! इसी प्रकार जिस श्रमणोपासक ने त्रस जीव की हिंसा का त्याग किया है, उसके लिये त्रस जीव हिंसा का विषय नहीं होता । किन्तु वही जीव जब त्रस पर्याय को छोड़कर स्थावर पर्याय में उत्पन्न होता है, तब वह उसके प्रत्याख्यान का विषय नहीं होता । निष्कर्ष यह है कि प्रत्याख्यान का सम्बन्ध पर्याय से है, द्रव्य जीव से नहीं । जैसे गृहस्थ में लौट आया साधु वध प्रत्याख्यान का विषय नहीं है, गृहवास मुनि हिंसा का सम्पूर्ण त्याग नहीं है, श्रमण से अश्रमण (गृहस्थ ) अवस्था में लौट आये व्यक्ति के साथ श्रमण निर्ग्रन्थ का सांभोगिक व्यवहार (भोजनादि ) उचित एवं कल्पनीय नहीं है, इसी प्रकार त्रस पर्याय को छोड़कर स्थावर पर्याय में उत्पन्न हुए प्राणी के साथ त्रस प्रत्याख्यानी का कोई सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार गौतम स्वामी ने उदक की प्रत्याख्यान विषयक शंका का विस्तृत समाधान किया । इसी क्रम में उन्होंने प्रत्याख्यान के 9 विकल्पों का भी प्रतिपादन किया । अन्त में गौतम स्वामी उदक को प्रखर शब्दों में कहते है - हे उदक ! जो अपनी क्षुद्र एवं अभिमानी प्रकृति के कारण पण्डित न होने पर भी अपने आप को पण्डित मानने वाला सम्यक् ज्ञान-दर्शन - चारित्र की आराधना में तत्पर, पापकारी कर्मों से विरत, शास्त्रोक्त आचार का पालन करने वाले उत्तम श्रमणों और माहनों की निन्दा करता है, झुठा आक्षेप लगाकर उन्हें बदनाम करता है, तो वह साधक सुगति स्वरूप परलोक तथा उसके कारणस्वरूप सुसंयम का अवश्य विनाश कर देता है । उदक ने इस कथन को आक्षेपात्मक तथा व्यंग्यात्मक प्रहार समझा और कृतज्ञता ज्ञापित किये बिना ही गौतम की उपेक्षा करके जहाँ से 220 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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