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सभी जीव त्रसकाय में उत्पन्न हो सकते है।
गौतम - उदक ! तुम्हारी यह मान्यता अयथार्थ है। ऐसा न कभी हुआ है, न होगा कि सभी त्रस जीव एक साथ स्थावर हो जाये, त्रस नाम का कोई प्राणी इस संसार में रहे ही नहीं। स्थावर अनन्त है, जबकि त्रस असंख्येय है। यह सही है कि काल की अपेक्षा से त्रस स्थावर में उत्पन्न होंगे पर दूसरे अनेक प्राणी त्रस में आकर उत्पन्न होते रहेंगे। अत: त्रस शून्य संसार की कल्पना व्यर्थ है। फिर ऐसे त्रस भी बहुत है, जिनका घात मनुष्य कर ही नहीं सकता, जैसेदेवलोक, नारकीय जीव, वैक्रियलब्धि से कृत वैक्रिय शरीर तथा तैंतीस सागर की आयुष्य वाले जीव। इन जीवों की अपेक्षा से श्रमणोपासक के सुप्रत्याख्यान ही होगा।
इसके अतिरिक्त तुम्हारे मतानुसार भी तो सभी जीवों को संसरणशील मानने पर सभी स्थावर त्रस रूप में उत्पन्न हो जायेंगे, तब श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान सर्वप्राणी विषयक हो जायेगा। इस प्रकार तुम्हारी मान्यता से तुम्हारे ही पक्ष का खण्डन हो जाता है।
उदक - गौतम ! कोई व्यक्ति त्रस जीव को मारने का प्रत्याख्यान करता है। वे त्रस जीव जब स्थावरकाय में उत्पन्न होते है, तब स्थावर काय की हिंसा करते हुये उस व्यक्ति का व्रत भंग नहीं होता ?
__गौतम - उदक ! तुम्हारे इस तथ्य को समझाने के लिये ये तीन दृष्टान्त पर्याप्त है
1. कोई व्यक्ति मुनि की हत्या न करने का व्रत लेता है- 'मैं यावज्जीवन किसी श्रमण का घात नहीं करूँगा।' कोई मुनि पाँच-सात-दश वर्ष तक श्रामण्य का पालन कर पुन: गृहवास को स्वीकार कर गृहस्थी बन जाता है। जिसने मुनि हत्या न करने का व्रत लिया है, उसके द्वारा श्रमण अवस्था से पुन: लौटकर आये हुये व्यक्ति का वध करने पर प्रत्याख्यान भंग होता है ?
उदक - नहीं।
गौतम - कोई गृहस्थ विरक्त होकर प्रव्रज्या ग्रहण कर वर्षों तक संयम का पालन करता है। फिर किसी कारणवश वह गृहवास में लौट जाता है। प्रव्रज्या ग्रहण से पूर्व गृहस्थावस्था में हिंसा का परित्याग नहीं था। जब मनि बना तो हिंसा का प्रत्याख्यान किया। अब पुन: गृहस्थी बनने पर क्या उसके सब प्राण, सब भूत, सब जीव और सब सत्वों के प्रति हिंसा का त्याग होगा ?
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 219
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