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प्रशंसनीय नूतन प्रस्थान - तीर्थंकर परमात्मा द्वारा उपदिष्ट एवं गणधर भगवंतों द्वारा ग्रंथित जैनागम विशिष्ट ज्ञान संपदा है, जिसमें आचार, सिद्धान्त, दर्शन, गणित एवं कथाओं का समृद्ध भंडार है। यह एक ऐसी ज्ञान संपदा है, जिसको पाकर कोई भी आत्मार्थी अपने जीवन को धन्य बना सकता है। जिनागमों की इस संपदा का अध्ययन स्व-पर कल्याणकर भी है।
आगमों में सूत्रकृतांग अंग, आगम अर्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें तत्कालीन अनेक मत-मतांतरों की विवेचना की गई है। मूलतः तो यह ग्रंथ आन्तरिक ग्रंथियों को नष्ट करने का एक सबल साधन है। विचारों से आन्तरिक ग्रंथियों का निर्माण होता है। यही ग्रंथियाँ एकांगी होने पर घातक बन जाती हैं। इनकी एकांगिता को समझाने वाला और अनेकान्तवाद को स्थापित करने वाला यह एक उत्तम ग्रंथरत्न है।
तत्कालीन वादों पर अद्यावधिपर्यंत सर्वांगीण दार्शनिक अध्ययन नहीं हुआ था। साध्वी श्री नीलांजना श्री जी ने इस ग्रंथ का दार्शनिक अध्ययन करने का पुरूषार्थ किया है। चार वर्षों की दीर्घकालीन विद्यासाधना के पश्चात् उन्होंने सफलता पूर्वक शोध-प्रबंध लिखने का कार्य संपन्न किया
और उन्हें पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई। यह एक गौरव का विषय है। इसके लिये साध्वी जी बधाई प्रेषित करते हुए कामना करता हूँ कि अपनी ज्ञान साधना के नूतन सुमन संघ को देती रहें।
- डॉ. जितेन्द्र बी. शाह निदेशक, एल.डी. रिसर्च इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद
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