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उनकी संयम यात्रा निर्बाध चलती रहे एवं क्रमशः गुणस्थानक की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए, आत्मलक्षी बनकर अकषायी एवं अयोगी अवस्था को उपलब्ध कर सिद्धत्व की उजास को प्राप्त करें।
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- मुनि मनितप्रभसागर
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