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________________ में उत्तीर्ण होना किसे खुशी के रंग से सराबोर नहीं करेगा। सूत्रकृतांग सूत्र ग्यारह अंग सूत्रों में से एक अतिविशिष्ट ग्रंथरत्न है, जिसमें 363 वादों का महत्वपूर्ण दार्शनिक विवेचन विस्तार से उपलब्ध होता है। इस दुरूह, गहरे एवं कठिन विषय पर शोध-प्रबंध लिखना कोई सामान्य बात नहीं है, पर उन्होंने अतीव परिश्रम एवं लगन से इस कार्य को पूर्णता प्रदान की है। विभिन्न वादों, मतों एवं विचारधाराओं का समावेश होने से यह ग्रंथ विद्वानों के लिये उपयोगी है, तो इसकी शैली सहज, सरल एवं सुबोध होने से स्वाध्याय-प्रेमियों के लिये अनमोल तोहफा है। मैं उनकी शोध-यात्रा का साक्षी रहा हूँ। वे पूरे दिन एक कक्ष में बंद .... लेखन में व्यस्त ..... पढ़ने में मस्त .... चारों तरफ बिखरी पुस्तकें एवं ग्रंथ! न तपन का अहसास .... न पानी की प्यास! ऐसे विशिष्ट दर्शन की गहराई से परिपूर्ण गंभीर ग्रंथ पर उन्होंने जो पैनी प्रज्ञा से परिपूर्ण कलम चलाई है, उसके परिणाम स्वरूप इसे एक मानद ग्रंथ के रूप में उद्घोषित किया गया है। यह सब उनके परिश्रम और आत्मविश्वास का परिणाम है। निश्चित रूप से उन पर माँ शारदा की कृपा एवं गुरूजनों का आशीर्वाद अमृत बन कर बरस रहा है। प्रस्तुत कृति आगमिक साहित्य जगत के लिये अनमोल देन तो है ही, उनकी जीवनयात्रा के लिये मील का पत्थर भी है। शोधकाल में जैन एवं जैनेतर ग्रंथों के विश्लेषण, मनन एवं चिंतन की गहराई में जाकर उन्होंने श्रुतज्ञान के बहुमूल्य मोती प्राप्त किये हैं। मेरी यह शुभाकांक्षा ही नहीं, हार्दिक इच्छा भी है कि वे इस शोध कृति की रोशनी में लेखन क्षेत्र में कदम आगे बढ़ाने का संकल्प करें एवं साहित्य जगत को नये-नये अनेक ग्रंथ प्रदान करने के कार्य का शुभारंभ करें। वे अपनी विशिष्ट प्रतिभा के माध्यम से लेखनी को गति देते हुए आगमिक क्षेत्र को अपने अवदान से परिपूर्ण करें। xiv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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