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प्रज्ञाभिनंदना
आत्मप्रिय अग्रजा बहिन डॉ. नीलांजना श्री जी म.सा. द्वारा लिखित शोधग्रंथ के प्रकाशन की पावन बेला में हृदय परम उल्लसित एवं आनंदित है । बहिन की शोध - यात्रा की पूर्णता, सफलता एवं प्रस्तुति के स्वर्णिम अवसर पर भाई के हृदय का उमंग से उमंगित होना स्वाभाविक ही है।
मेरे अबोध बचपन में ही वे संसार छोड़कर संयम पथ की साधना में गतिमान हो गये थे, फिर भी मेरे मन में एक अदृश्य प्रेरणा छिपी हुई थी कि जीजी ने जिस पावन पथ को अपनाया है, मुझे भी उसी राह का अनुसरण करना है। यह बात मुझे सदैव गौरव भरा आनंद प्रदान करती है कि मैंने अपने सपने को यथार्थ के धरातल पर साकार कर भ्राता और बहिन के पावन बंधन के जीवन पर्यंत निभाने के संकल्प को पूर्ण किया
है।
उनका स्नेह मुझे सदा से मिलता रहा है, कभी डाँट के रूप में तो कभी पुचकार के रूप में; कभी पत्र के माध्यम से तो कभी प्रत्यक्ष रूप
से।
ऐसी बहिना पर मुझे नाज है। उनकी योग्यता और प्रतिभा किसी से छिपी नहीं है। बी. ए. में प्रथम स्थान प्राप्त कर स्वर्णपदक के हकदार बने; तो एम.ए. में द्वितीय स्थान प्राप्त कर गुरू गरिमा में अभिवृद्धि की । संपूर्ण बारसा सूत्र मात्र चालीस दिन की अल्पावधि में कंठस्थ कर आप ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।
यह
उनकी शोध - यात्रा सफलता के शिखर का स्पर्श कर रही है, गौरव मिश्रित हर्ष का विषय है। जीवन के एक अहमियत भरे इम्तिहान
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