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है । फिर तुम्हारा यह कहना ‘अविद्या प्रत्ययाः संस्कारा' भी उचित नहीं होगा । तब तुम्हारी दृष्टि में संसार के सभी प्राणी सम्यग्दृष्टि हो जायेंगे, विरत और अविरत का भेद ही समाप्त हो जायेगा । सर्वत्र हिंसा और क्रूरता का ताण्डव नृत्य होगा । आज बहुत कठिनाई से किसी व्यक्ति को अहिंसक बनाया जाता है । तुम्हारे कहने के अनुसार तो कुशलचित्त से प्राणीवध करने वाला अहिंसक हो जायेगा । ऐसी स्थिति में सारा संसार अहिंसक कहलायेगा | 20 यदि यह मान लिया जाये कि अज्ञान से दोष नहीं लगता तो वैदिकों का कल्याण बुद्धि से हिंसा करना भी निर्दोष हो जायेगा । और इसी प्रकार 'संसारमोचक' सम्प्रदाय का सिद्धान्त 'दुःख से तड़फते प्राणी को मार डालना चाहिये' भी सम्मत हो जायेगा ।
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वृत्तिकार ने इसे और अधिक स्पष्ट किया है- अज्ञान से आवृत्त मूढ व्यक्ति की भावशुद्धि फलवान नहीं होती । यदि फलवान् होती तो संसारमोचक सम्प्रदाय वालों के भी कर्मक्षय हो जायेगा । यदि तुम केवल भावशुद्धि को ही स्वीकार करते हो तो फिर सिरमुण्डन, पिण्डपात, चैत्यपूजा आदि सारे अनुष्ठान व्यर्थ हो जायेंगे। 2'
आर्द्रक मुनि पुनः तर्क प्रस्तुत करते है कि पिण्याकपिण्डी में पुरुष बुद्धि सम्भव नहीं लगती। पुरुष सचेतन है । उसमें हलन चलन आदि क्रियाएँ होती है, तब पुरुष को पिण्याकपिण्डी कैसे समझा जा सकेगा ? यदि तुम कहो कि गहरी नींद में सोये हुये मनुष्य में हलन चलनादि क्रियाएँ नहीं होती है, इसलिये यह सम्भव है तो वस्त्र से आच्छादित यह वस्तु पुरुष है या पिण्याकपिंडीइन दोनों सम्भावनाओं को जानने वाला नि:शंक होकर प्रहार कैसे करेगा ? जिसमें हिंसा - अहिंसा का विवेक है, वह ऐसा नहीं कर सकता। इसी प्रकार पुरुष को पिण्याकपिण्डी समझने की बात भी बुद्धि से परे है। उसमें भी विमर्श जरूरी होता है। यह पुरुष है या पिण्याक - पिण्डी अथवा यह कुमार है या तुम्बा ? इसलिये कुशलचित्त या अकुशलचित्त कोई भी हो, इन दोनों सम्भावनाओं पर विचार किये बिना निःशंकतया प्रहार करता है, उसे हिंसक न मानना तथा पापकर्म से अलिप्त मानना मिथ्यावाद है । 22
आर्द्रक ने अपनी युक्तियों से बौद्ध भिक्षुओं को निरूत्तर कर उनका उपहास करते हुये कहा बौद्ध भिक्षुओं ! यदि अज्ञान ही श्रेय है, तो तुम ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न क्यों करते हो ? ओह ! तुमने ही यथावस्थित तत्त्व को प्राप्त किया है। जीवों के शुभाशुभ कर्म विपाक को तुमने ही समझा है। इस प्रकार के विज्ञान से तुम्हारा यश समुद्रों पार गया है। लगता है - इसी विज्ञान रूपी आलोक
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 209
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