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मुनि इसे अनुकूल उपसर्ग जानकर तत्काल वहाँ से अन्यत्र विहार कर गये।
एक बार उस श्रेष्ठी कन्या से विवाह करने हेतु कुमार आये। कन्या के द्वारा आगन्तुकों के आने का प्रयोजन पूछने पर पिता ने विवाह की बात कही। कन्या ने कहा- तात्! कन्या एक बार ही दी जाती है। मैं भी उसे दी जा चुकी हूँ, जिसका धन आपने सुरक्षित रखा है। पिता ने पूछा- क्या तुम उसे पहचानती हो ? कन्या ने कहा- मैं पाँव के चिन्ह से उन्हें पहचान सकती हूँ।
भवितव्यता के योग से आर्द्रक मुनि विचरण करते हुये उसी नगर में वहीं भिक्षार्थ पहुँच गये, जहाँ वह कन्या भिक्षुओं को दान देती थी। पदचिन्ह देखकर वह तत्काल उन्हें पहचान गयी। अपने पिता से कहा- यही मेरे पति है। आर्द्रक मुनि को देववचन का स्मरण हो आया। कर्मों का उदय और नियति को मान भिक्षुवेश को छोड़कर श्रेष्ठी कन्या के साथ रहने लगे। एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बारह वर्ष का हो गया, तब आर्द्रक ने अपनी पत्नी से कहा - अब तुम पुत्र के साथ रहो। मैं पुन: प्रव्रजित होना चाहता हूँ। यह सुनकर वह सूत कातने लगी। पुत्र के पूछने पर पिता के दीक्षा लेने की बात कही। तब पुत्र ने सोये हुये पिता को माँ द्वारा काते गये सूत से बाँधते हुये कहा - मेरे द्वारा बांधे जाने पर अब ये कहाँ जायेंगे। सूत के बारह बंध होने के कारण आर्द्रक 12 वर्ष और गृहवास में रहे। ज्योंहि समय पूरा हुआ, मन में चिन्तन उभरा- पूर्वजन्म में मात्र मानसिक रूप से कामभोगों की कल्पना की थी, जिससे अनार्य देश में उत्पन्न होना पड़ा। इस जीवन में तो साधुवेश छोड़कर मन, वचन और कायातीनों योगों से संसार का सेवन किया है, मेरी आत्मा का उद्धार कैसे होगा ? इन्हों विचारों में डूबे आर्द्रक घर से निकलकर पुन: प्रव्रजित हो गये।
एकाकी विहार करते हये राजगृही की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में पाँच सौ चोर मिले, जिन्हें देखते ही मुनि पहचान गये। ये पाँच सौ चोर वे ही व्यक्ति थे, जिन्हें राजा आईक ने आर्द्रकुमार की पहरेदारी के लिये अंगरक्षक के रूप में नियुक्त किया था और उन्हें चकमा देकर आर्द्रकुमार आर्यदेश में पहुँच कर दीक्षित हो गये थे। वे सभी रक्षक राजाज्ञा की अवहेलना के दण्ड के भय से अटी में आकर चोर बन गये। आर्द्रक मुनि ने उन्हें प्रतिबोध किया। वे सभी चोर मनि बन गये।
मुनि आर्द्रक उन सभी को साथ लेकर भ. महावीर के दर्शनार्थ राजगृह आये। नगर के प्रवेश द्वार पर गोशालक, बौद्धभिक्षु, ब्रह्मवादी, त्रिदण्डी तथा हस्ति204 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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