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भी भेंटस्वरूप मूल्यवान अनेक उपहार भेजे। अभयकुमार ने परिणामिकी बुद्धि से जान लिया कि राजकुमार आर्द्र सम्यग्दृष्टि जीव है तथा निकट भविष्य में ही मुक्ति को प्राप्त करेगा । उसने अपने परम कर्त्तव्य का निर्वाह करते हुये आर्द्र कुमार को प्रतिबुद्ध करने के लिये एक विशिष्ट प्रकार का उपहार भेजा।
नियुक्तिकार तथा वृत्तिकार ने स्पष्ट शब्दों में यह उल्लेख किया है कि अभय कुमार ने भेंट में आदि तीर्थंकर ऋषभ की प्रतिमा प्रेषित की थी । यहाँ विशेष रूप से ज्ञातव्य है कि मधुकर मुनिजीम द्वारा सम्पादित सूत्रकृतांग' में जिन प्रतिमा के स्थान पर मात्र आत्म साधनोपयोगी उपकरण ही उपहार स्वरूप भेजे जाने का उल्लेख है, जबकि अमरसुखबोधिनी व्याख्याकार अमरमुनिजी ने रजोहरण, आसन तथा प्रमार्जनिका का उल्लेख किया है।
सम्प्रदायविशेष से अनुबन्धित होने पर भी जो शास्त्र वचनों में हेराफेरी नहीं करता, मताग्रह तथा पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर श्रुतधर महापुरुषों की वाणी का यथास्वरूप वर्णन, विश्लेषण करता है, वही निष्ठावान साहित्यकार की शर्तों पर खरा उतरता है। इससे वह अपनी लेखनी के साथ तो न्याय करता ही है, साथ ही इतिहास के तथ्यों को भी सुरक्षित रख पाने में सफल हो पाता है।
जिन्होंने 'जिनप्रतिमा' के स्थान पर अन्य उपकरणों का उल्लेख किया है, लगता है उनके लिये नियुक्तिकार, चूर्णिकार तथा वृत्तिकार के वचन प्रमाणभूत नहीं है अथवा सन्देहास्पद है । अन्यथा प्रभु प्रतिमा के स्थान पर रजोहरणादि का उल्लेख कर वे अपनी साम्प्रदायिकता से उपजी संकीर्ण मनोवृत्ति को उजागर नहीं करते । अस्तु !
आर्द्रकुमार को जिन प्रतिमा के दर्शन से जातिस्मृति ज्ञान की उपलब्धि हुई। पूर्व जन्म के साक्षात् दर्शन से वह संबुद्ध हो गया । उसका मन कामभोगों से विरक्त हो गया। अवसर पाते ही अपने देश से पलायन कर आर्यदेश में पहुँच गया। प्रवज्या ग्रहण करते समय देववाणी गूँजी- 'अभी दीक्षित मत बनो, तुम्हारे भोगावली कर्म शेष है ।' परन्तु देववचन की अवमानना कर वह प्रव्रजित हो गया। एकदा विचरण करते हुये आर्द्रक मुनि वसन्तपुर नगर में आये और प्रतिमा में स्थित हो गये । पूर्वभव की पत्नी साध्वी इसी नगर में श्रेष्ठी पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी। उसने बालिकाओं के साथ खेल खेलते हुये मुनि का वरण कर लिया । देवताओं ने हिरण्यवृष्टि की। राजा ने उस धन को लेना चाहा तब देवताओं ने निषेध कर दिया । कन्या के पिता ने उस धन का संगोपन कर दिया। आर्द्रक
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 203
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