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इ. श्लेषा - स्तंभ, कुड्य आदि वज्रलेप से लिप्त। भावार्द्र - राग भाव से जो जीव आर्द्र है, वह भावआर्द्र है। नियुक्तिकार ने द्रव्यार्द्र के अन्य तीन प्रकार भी बताये है
(1) एकमविक - जो जीव एक भव के द्वारा स्वर्ग से आकर यहाँ मनुष्य भव में आर्द्र कुमार के रूप में उत्पन्न होगा।
(2) बद्धायुष्क - जिसने आर्द्रकुमार के रूप में उत्पन्न होने का आयबंध कर लिया है।
(3) अभिमुखनामगोत्र - जो अनन्तर समय में ही आर्द्रक रूप से उत्पन्न होगा।
इसी प्रकार जो जीव आर्द्रक के आयुष्य, नाम, गोत्र का अनुभव करता है, वह भावाक है। यद्यपि शंगबेरादि के भी आर्द्रक संज्ञा होती है, परन्तु यहाँ उनकी अपेक्षा से प्रस्तुत अध्ययन की विवक्षा नहीं है।
आर्द्रकपुर में आर्द्रक राजा के आर्द्र नामक राजकुमार था। वह अणगार बना, इसलिये आर्द्रक से समुत्पन्न होने के कारण इस अध्ययन का नाम आर्द्रकीय है।' यह अनुश्रुति है कि आर्द्रकपुर अनार्य देश में था। कुछ लोगों ने 'अद्द' आर्द्र शब्द की तुलना ‘ऐंडन' के साथ भी की है।'
नियुक्तिकार, चूर्णिकार तथा वृत्तिकार तीनों ने आर्द्र शब्द की व्याख्या करते हुये आर्द्रकुमार की जीवनकथा के साथ पूर्वभव पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला है, जो संक्षेप में इस प्रकार है।
वसन्तपुर नामक नगर में सामयिक नाम का गृहपति अपनी पत्नी के साथ धर्मघोष आचार्य के पास दीक्षित हो गया। एक बार अपनी पत्नी को गोचरी जाते देखा तो पूर्वभुक्त क्रीड़ाओं की स्मृति हो आयी। साध्वी रूप पत्नी को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने व्रतभंग के भय से अनशनपूर्वक मृत्यु का आलिंगन करके देवगति को प्राप्त किया। मुनि ने जब यह सारा वृत्तान्त जाना तो पश्चात्ताप पूर्वक अनशन कर वह भी देवलोक में उत्पन्न हुआ। साध्वी का जीव देवलोक के च्यवकर वसन्तपुर नगर में एक श्रेष्ठी के घर कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ। तथा साधु का जीव आर्द्रदेश में आर्द्रक राजा के पुत्र आर्द्रकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ। आर्द्र कुमार क्रमश: यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ। एक बार आर्द्रक राजा ने प्रीतिवश मगधसम्राट श्रेणिक को विशिष्ट उपहार भेजे। आर्द्रकुमार ने पूछा - सम्राट के कोई पुत्र है ? उनके पुत्र अभय कुमार है, ऐसा ज्ञात होने पर उसने 202 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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