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प्रस्तुत अध्ययन में आचार शब्द दर्शन आचार तथा वाक् आचार अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। संयमी साधक तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट आचरणीय मार्ग में अपने आप को स्थापित करे, यही इस अध्ययन का फलितार्थ है ।
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सन्दर्भ एवं टिप्पणी
सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 183 'तो अणगार सुयंति य होई नामं तु एयरस ।' सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 371 - केषाचिन्मतेनैतस्याध्ययनस्य अनगाश्रुत मित्येतन्नाम भवति इति । सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा
सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. नियुक्ति पंचक उत्तराध्ययन नियुक्ति गाथा
(क) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. (ख) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
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402
द. वसा
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182 आयार सुयं भणियं । '
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खण्ड 3, दशवैकालिक नियुक्ति गाथा
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407-409
377-382
6. आर्द्रकीय अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के षष्ठम अध्ययन का नाम 'आर्द्रकीय'
है ।
मुनि आर्द्रक का विभिन्न मतवादियों के साथ वाद-प्रतिवाद का संकलन होने के कारण प्रस्तुत अध्ययन का नाम आर्द्रकीय रखा गया है। नियुक्तिकार ' ने आर्द्र शब्द के चार निक्षेप किये है। नाम आर्द्र, स्थापना आर्द्र, द्रव्य आर्द्र तथा भाव आर्द्र है।
नाम तथा स्थापना निक्षेप को गौण करके द्रव्य आर्द्र के विभिन्न उदाहरण इस प्रकार प्रस्तुत किये गये है।
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अ. उदकार्द्र - पानी से मिट्टी आदि द्रव्य को आर्द्र करना ।
ब. सारार्द्र - बाहर से शुष्क तथा मध्य से आर्द्र, जैसे - श्रीपर्णी फल । स. छविआर्द्र - स्निग्ध त्वचा वाले द्रव्य,
जैसे मुक्ताफल, रक्त, अशोक
आदि ।
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154-161
वसा - चर्बी से आर्द्र ।
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सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 201
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