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________________ 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 343 वही (क) सूत्रकृतांग नियुक्तिगाथा - 172 : ओयाहारा जीवा सव्वे अपज्जत्तगा मुणेयव्वा । (ख) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 377 (ग) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 343/344 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा 172 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा अ). वही, गा. 173 ब) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 377/378 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 174 तत्त्वार्थ सूत्र 2/31 ठाणं - 4/579 'चउहिं ठाणेहिं आहार सण्णा समुपज्जइ, - तं जहा ओमकोट्ठयाए, छुहावेयणिज्जरस कम्मरस उदरणं, मईए, तयट्ठोवओगेणं' । सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 345/346 अभिधान कोश, तृतीय कोश स्थान, श्लोक 38-44 (अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. 384 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - Jain Education International - 377: तयाइ फासेण लोम आहारो । 343 - - 378 171/172 - 352-355 4. प्रत्याख्यान क्रिया अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र (द्वि. श्रु.) के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'प्रत्याख्यान क्रिया' है। प्रत्याख्यान का अर्थ है- विरति और अप्रत्याख्यान का अर्थ है- अविरति । अविरति आश्रव है। यह कर्मागमन का द्वार है । जब तक यह द्वार खुला है, तब तक कर्म आते रहते है । विरति रूपी द्वार से कर्म का आगमन बंद हो जाता है। प्रत्याख्यान शब्द जैन दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। कोष के अनुसार इसके निम्नलिखित अर्थ है ' 1. त्याग करने का निश्चय (संकल्प) लेना । 2. परित्याग करने की प्रतिज्ञा करना । सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 195 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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