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सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र 343
वही
(क) सूत्रकृतांग नियुक्तिगाथा - 172 : ओयाहारा जीवा सव्वे अपज्जत्तगा मुणेयव्वा । (ख) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
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377
(ग) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 343/344
सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा 172
सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा
अ). वही, गा. 173
ब) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 377/378
सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 174
तत्त्वार्थ सूत्र
2/31
ठाणं - 4/579 'चउहिं ठाणेहिं आहार सण्णा समुपज्जइ, - तं जहा ओमकोट्ठयाए, छुहावेयणिज्जरस कम्मरस उदरणं, मईए, तयट्ठोवओगेणं' ।
सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
345/346
अभिधान कोश, तृतीय कोश स्थान, श्लोक 38-44
(अ) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ.
384
(ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र
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377: तयाइ फासेण लोम आहारो ।
343
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- 378
171/172
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352-355
4. प्रत्याख्यान क्रिया अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र (द्वि. श्रु.) के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'प्रत्याख्यान क्रिया' है। प्रत्याख्यान का अर्थ है- विरति और अप्रत्याख्यान का अर्थ है- अविरति । अविरति आश्रव है। यह कर्मागमन का द्वार है । जब तक यह द्वार खुला है, तब तक कर्म आते रहते है । विरति रूपी द्वार से कर्म का आगमन बंद हो जाता है। प्रत्याख्यान शब्द जैन दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। कोष के अनुसार इसके निम्नलिखित अर्थ है '
1.
त्याग करने का निश्चय (संकल्प) लेना ।
2.
परित्याग करने की प्रतिज्ञा करना ।
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 195
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