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________________ प्रकार के होते है- अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज तथा स्कन्धबीज । (1) जिनके बीज अग्रभाग में उत्पन्न होते है, वे बीज अग्रबीज है - जैसे ताड, आम, शाल, कोरण्टक आदि । मूल आदि । ( 3 ) जो पर्व से उत्पन्न होते है, वे पर्वबीज कहलाते है - जैसे इक्षु आदि। ( 2 ) जो से उत्पन्न होते हैं, वे मूलबीज कहलाते है - जैसे अदरक (4) जिनके डंठल बीज रूप में काम आते है, वे स्कन्धबीज कहलाते है - जैसे शल्लकी आदि । ये चारों ही वनस्पतिकायिक जीव अपने-अपने जीव से अपेक्षित काल, जल, भूमि तथ साथ ही कर्म से प्रेरित होकर उत्पन्न होते है, तथापि ये पृथ्वीयोनिक कहलाते है क्योंकि इनकी उत्पत्ति का कारण जैसे बीज है, वैसे ही पृथ्वी भी है। इसी अनुक्रम में वृक्षयोनिक अर्थात् वृक्ष से उत्पन्न होने वाले वृक्ष तथा वृक्षयोनिक वृश्नों में ही वृक्ष रूप उत्पन्न होने वाले वृक्षयोनिक वृक्षों की भी उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि तथा आहारादि का वर्णन किया गया है। यहाँ एक बात स्पष्ट की गयी है कि वृक्ष के अंगोपांग के रूप में उत्पन्न मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक् (छाल), शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज इन दस अवयवों के जीव पृथक्-पृथक् है और वृक्ष का सर्वांग व्यापक जो जीव है, वह इनसे पृथक् है । ये सब वनस्पतियोनिक वनस्पति जीव है 1 इस प्रकार यहाँ कुछ शब्दों को बदलकर पुनः उन्हीं आलापकों की पुनरावृत्ति के द्वारा, वनस्पतिकायिक जीवों के विभिन्न प्रकार बताते हुए वनस्पति में जीवत्व की सिद्धि की है । उल्लेखनीय है कि शाक्यमतानुयायी स्थावरों को जीव का शरीर नहीं मानते । परन्तु इन्हें विशिष्ट आहार मिलने पर जो संवर्द्धन तथा न मिलने पर जो कृशता परिलक्षित होती है, वह इनमें जीवत्व को ही सिद्ध करती है। सकाय के प्रकरण में मनुष्य, जलचर, स्थलचर तथा खेचर के आहार पदों का वर्णन है । अन्तिम आलापक द्वारा अध्ययन का उपसंहार करते हुये सामान्य रूप से समस्त प्राणियों की अवस्थाओं का कथन किया है । यहाँ एक प्रश्न होता है कि षड्जीवनिकायों में वनस्पति पाँचवा जीवनिकाय है । प्रस्तुत अध्ययन में उसका वर्णन पहले कर फिर पृथ्वीकाय आदि का वर्णन सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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