________________
इसी क्रम में वृत्तिकार ने केवलीभुक्ति का निषेध करने वाले विद्वानों का मन्तव्य प्रस्तुत करते हुये यह स्पष्ट किया है कि केवली में कवलाहार ग्रहण करने के चार कारण विद्यमान है- (1) पर्याप्तित्व, (2) वेदनीय उदय, (3) आहार को पचाने वाला तेजस शरीर तथा (4) दीर्घायुष्कता। ये चारों ही कारण केवली में केवलज्ञान होने से पूर्व भी विद्यमान थे तथा केवलज्ञान होने के पश्चात् भी
शैलेषी अवस्था के पूर्व तक विद्यमान रहने से केवली शैलेषीकरण की पूर्व अवस्था तक कवलाहार ग्रहण करते है। इसमें कोई भी युक्ति बाधक नहीं हो सकती।
बौद्ध परम्परा में आहार का एक प्रकार कवलिकार आहार माना गया है, जो गन्ध, रस एवं स्पर्श रूप है। कवलिकार आहार दो प्रकार का है - औदारिय या स्थूल आहार तथा सूक्ष्म आहार । जन्मान्तर प्राप्त करते समय गति में रहे हये जीवों का आहार सूक्ष्म होता है। सूक्ष्म प्राणियों का आहार भी सूक्ष्म ही होता है, इसके अतिरिक्त स्पर्श आहार मनस, चेतना एवं विज्ञान रूप तीन प्रकार के आहार और माने गये है, जो कामादि तीन धातुओं में रहते है।"
प्रस्तुत अध्ययन में आहार और योनि के आधार पर वनस्पति के बारह प्रकार निर्दिष्ट किए हैं -
1. पृथ्वीयोनिक वृक्ष 2. वृक्षयोनिक अध्यारोह वृक्ष 3. उदकयोनिक वृक्ष 4. उदकयोनिक अध्यारोह वृक्ष 5. पृथ्वीयोनिक तृण 6. उदकयोनिक तृण 7. पृथ्वीयोनिक औषधि 8. उदकयोनिक औषधि 9. पृथ्वीयोनिक हरित 10. उदकयोनिक हरित 11. पृथ्वीयोनिक कुहण
12. उदकयोनिक कुहण इन प्रत्येक के चार-चार आलापक हैं।
सूत्रकार ने अध्ययन के प्रारम्भ में बीजकाय के प्रकार तथा आहार के सम्बन्ध में विवेचना की है। जिनका शरीर ही बीज है, ऐसे बीजकाय वाले जीव चार 192 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org