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गया तीर लक्ष्य भ्रष्ट होकर किसी अन्य पशु अथवा प्राणी का घात कर देता है अथवा किसी घास को काटने के अभिप्राय से चलाया गया औजार किसी अन्य पौधे को काट देता है। अत: इसे अकस्मात्दण्ड प्रत्ययिक क्रियास्थान कहा गया है।
5. दृष्टिविपर्यास दंड प्रत्ययिक क्रियास्थान- दृष्टिभ्रम अथवा दृष्टिविपरीतता के कारण अपने माता-पितादि स्वजन अथवा मित्रादि हितैषी को गलतफहमी से शत्रु समझना अथवा साहूकार को चोर समझकर उन्हें दण्ड देने अथवा मारने की बुद्धि दृष्टि विपर्यास क्रियास्थान है।
6. मृषावाद प्रत्ययिक क्रियास्थान- अपने लिये या अपने परिवार के लिये जो स्वयं असत्य बोलता है, बुलवाता है अथवा बोलने वाले का समर्थन करता है, वह मुषावाद प्रत्ययिक क्रियास्थान है।
7. अदत्तादान प्रत्ययिक क्रियास्थान- इसी प्रकार अपने या घर-परिवार के लिये अदत्त वस्तु ग्रहण करना अर्थात् चोरी करना, करवाना तथा उसका अनुमोदन करना अदत्तादान प्रत्ययिक क्रियास्थान है।
8. अध्यात्म प्रत्ययिक क्रियास्थान - किसी अन्य के अपमान अथवा तिरस्कार न करने पर भी स्वयमेव हीन भावना से ग्रस्त, उदास, दीन, दु:खी तथा संकल्प-विकल्प में डूबे रहना अध्यात्म प्रत्यय दण्ड है। इस प्रकार के मनुष्यों के हृदय में क्रोध, मान, माया, लोभादि कषाय प्रवर्त्तमान रहते है। इन कषाय रूप भावों से सावद्य कर्म का बन्ध होता है, अत: इसे अध्यात्मप्रत्यय क्रियास्थान कहा गया है।
9. मानप्रत्ययिक क्रियास्थान - जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद, ऐश्वर्यमद या प्रजामद इन अष्टविध मदस्थानों में अथवा इनमें से किसी एक-दो में डूबकर अन्य व्यक्ति को हीन समझता है, उनकी निन्दा, भर्त्सना या अवहेलना करता है तथा स्वयं को विशिष्ट जाति, कुल, बल आदि गुणों से सम्पन्न मानता हुआ गर्व करता है, वह मान प्रत्ययिक क्रियास्थान कहलाता है। इस प्रकार मद (अभिमान) की क्रिया द्वारा सावध कर्मबन्ध करता है।
10. मित्रदोषप्रत्ययिक क्रियास्थान - कोई प्रभुत्व सम्पन्न पुरुष मातापिता आदि परिवार वालों में से किसी का जरा सा अपराध होने पर भी बैंत, छड़ी, चमड़ा, डण्डे से अथवा मुक्के व ढेले से मार-मार कर भारी दण्ड देता है। इस प्रकार वह महादण्ड प्रवर्तक अपने हितैषी व्यक्तियों को महादण्ड देने 182 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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