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________________ 2. क्रियास्थान अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के (द्वि. श्रु.) द्वितीय अध्ययन का नाम 'क्रियास्थान' है। इस अध्ययन में कर्मबन्ध की कारणभूत बारह क्रियाओं का और कर्मबन्ध से मुक्त होने की तेरहवीं क्रिया का वर्णन है। इसलिये इसका नाम क्रियास्थान रखा गया है।' नियुक्तिकार ने क्रियाओं का विवेचन आवश्यक नियुक्ति में किया है। प्रस्तुत अध्ययन में मोक्ष का अधिकार है, फिर कर्मबन्ध के उल्लेख का क्या प्रयोजन है ? चूर्णिकार इस प्रश्न का समाधान करते हुये कहते है - बन्ध के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है, अत: यहाँ बन्ध और इसके कारणों का भी अधिकार है। आवश्यक सूत्र के अन्तर्गत प्रतिक्रमण अध्ययन में 'पडिक्कमामि तेरसहिं किरियाठाणेहिं' पाठ से इन्हीं तेरह क्रियाओं का ग्रहण है। दूसरा वर्गीकरण स्थानांग सूत्र में उपलब्ध होता है। उसमें गौण-मुख्य भेद से 72 क्रियाओं का निर्देश है।' तत्त्वार्थ सूत्र में भी पच्चीस क्रियाओं का उल्लेख है। क्रियाओं के दो प्रकार है - द्रव्य क्रिया तथा भाव क्रिया। इन दोनों की परिभाषा अनुपयोग तथा उपयोग के आधार पर की जाती है। जिस क्रिया में चितवृत्ति संलग्न नहीं है, वह द्रव्य क्रिया और जिसके साथ संलग्न है, वह भाव क्रिया कहलाती है। वृत्तिकार ने इन्हें भिन्न कोण से परिभाषित किया है - 1. द्रव्यक्रिया - द्रव्य क्रिया वह है, जो अजीव द्वारा चलन, कम्पन रूप होती है। वह भी प्रयोगत: (प्रयत्नपूर्वक) एवं विस्त्रसात: (सहज) भेद से दो प्रकार वाली है। इसी प्रकार उपयोग पूर्विका, अनुपयोग पूर्विका, अक्षिनिमेषमात्रादि समस्त द्रव्य क्रियाएँ है। 2. भावक्रिया - भाव-प्रधान क्रिया भावक्रिया है। नियुक्तिकार ने इसके आठ प्रकार बतलाये है - " (1) प्रयोग क्रिया, ( 2 ) उपाय क्रिया, (3) करणीय क्रिया, (4) समुदान क्रिया, (5) ई-पथ क्रिया, (6) सम्यक्त्व क्रिया, (7) सम्यङमिथ्यात्व क्रिया और (8) मिथ्यात्व क्रिया। 1. प्रयोग क्रिया - इसके मन, वचन तथा काया की अपेक्षा से तीन भेद होते है। जिस क्रिया के द्वारा मनोद्रव्य आत्मा के उपयोग का साधन बनता है, वह मनः प्रयोग क्रिया कहलाती है। इसी प्रकार वचन तथा काया सम्बन्धी प्रयोग होते है। सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 179 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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