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में सुख पाते है। उभयभ्रष्ट बीच में ही कामभोगों में फँसकर दुःख पाते है।
शास्त्रकार ने चतुर्थ पुरुष को नियतिवादी कहा है, जो गोशालक का मत है। इसके अनुसार जगत की सारी क्रियाएँ नियत अर्थात् निश्चित है। इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। मनुष्य को सुख-दु:ख, हानि-लाभ, जीवन-मरण आदि जो कुछ भी प्राप्त होता है, उसमें नियति ही एकमात्र कारण है। शुभ कार्य करने वाले दु:खी तथा अशुभ कार्य करने वाले सुखी दिखायी देते है, यह नियति की ही प्रबलता है। परन्तु अज्ञानी लोग इसे ईश्वरकृत, कालकृत या स्वकृत मानकर दु:खी होते है। संक्षेप में, समस्त संसार नियति के अधीन
अन्त में आने वाला भिक्षु इन चारों पुरुषों से भिन्न है। शास्त्रकार ने इस अध्ययन की समाप्ति करते हुये पुण्डरीक कमल को प्राप्त करने के योग्य निर्ग्रन्थ भिक्षु की विशेषताओं एवं योग्यताओं का सर्वांगीण विश्लेषण किया है।
वह भिक्षु षटकायिक जीवों की हिंसा से पूर्ण विरत है। इसी प्रकार मुषा, अदत्त, परिग्रह तथा मैथुन से भी सर्वथा निवृत्त है। वह न शरीर की विभूषा करता है, न दन्त प्रक्षालन, विरेचन, अंजन, धूप सेवन तथा रोगादि से मुक्त होने के लिये धुम्रपान आदि करता है। वह साधक सम्पूर्ण सावध क्रियाओं से विरत, अहिंसक, अकषायी तथा उपशान्त है। अपनी ज्ञान- दर्शन-चारित्र-तप-संयमरूप समाधि में लीन, पारलौकिक फलाकांक्षा, सिद्धिओं की वांछा से रहित है।
संक्षेप में जो पूर्वोक्त गुणों से युक्त है तथा संसार एवं धर्म का वास्तविक ज्ञाता बनकर त्याग धर्म का उपदेश देता है एवं तदनुरूप आचरण भी करता है, वहीं भिक्षु धर्मार्थी, धर्मवेत्ता है, वही सर्वश्रेष्ठ पंचम पुरुष है, जो पुण्डरिक कमल रूप श्रेष्ठ निर्वाण को प्राप्त करता है, अथवा उसे प्राप्त करने योग्य बन जाता है। इससे विपरीत आचरण वाले मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते तथा कामभोग रूप कीचड़ में ही फँसकर रह जाते है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी पाईअसद्दमहण्णवो पृ. - 602 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 144-158 सूयगडो - 21/12
178 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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