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द्वितीय श्रुतस्कन्ध
1. पुण्डरीक अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के (द्वि. श्रु.) के प्रथम अध्ययन का नाम 'पुण्डरीक' या 'पौण्डरिक है। पौण्डरिक शब्द-उत्तम, कान्त, प्रधान, श्रेष्ठ, मुख्य, श्वेतकमल तथा एक राजा आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है।' प्रस्तुत अध्ययन के प्रतिपाद्य को पुण्डरीक (श्वेत-कमल) की उपमा के द्वारा समझाया गया है।
नियुक्तिकार ने पुण्डरीक के आठ निक्षेप किये है - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, गणना, संस्थान, भाव।
1. नाम पुण्डरीक- किसी का नाम पुण्डरीक रखना, नाम पुण्डरीक है।
2.स्थापना पुण्डरीक- किसी वस्तु में पुण्डरीक की स्थापना करना, स्थापना पुण्डरीक है। ____3. द्रव्य पुण्डरीक- द्रव्य पुण्डरीक के तीन भेद है - सचित्त, अचित्त तथा मिश्र।
1. सचित्त द्रव्य पुण्डरीक- नरक गति को छोड़कर तिर्यंच, मनुष्य, देवताओं में जो श्रेष्ठ होते है वे सचित्त द्रव्य पौण्डीक है। इसके भी तीन भेद हैं।
(अ) तिर्यंच पौण्डीक - जलचर, स्थलचर तथा खेचर में जो श्रेष्ठ तथा कान्त होते है और जो लोगों द्वारा स्वभावत: अनुमत होते है, वे तिर्यंचों में पौण्डरीक है। जैसे
(क) जलचर में मत्स्यादि विशिष्टता वाले होते है। (ख) स्थलचर में वर्ण और रूप से प्रशस्त सिंह आदि। (ग) खेचर में हंस, मयूर, कौकिल आदि रूप, वर्ण तथा स्वर से श्रेष्ठ होते
(ब) मनुष्य पौण्डरीक - अर्हत, चक्रवर्ती, चारणश्रमण, विद्याधर, हरिवंश कुल में उत्पन्न दशार, ईक्ष्वाकु आदि श्रेष्ठ कुलों में उत्पन्न व्यक्ति मनुष्यों में पौण्डरीक होते है।
(स) देव पौण्डरीक - भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक देवों में जो प्रवर होते है, वे देवताओं में पौण्डरीक होते है।
(2) अचित्त द्रव्य पौण्डरीक - धातुओं में कांस्य, वस्त्रों में चीनांशुक, मणिओं में वैडूर्य, इन्द्रनील, पद्मराग आदि, मोतीओं में बृहदाकार मोती आदि
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 17:
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