________________
15. जमतीत अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र के पञ्चदश अध्ययन का नाम जमतीत ( यमकीय) है। नियुक्तिकार ने इसका नाम 'आदानीय' या 'आदान' बताया है। उनका कथन है कि इस अध्ययन में पूर्व - पूर्व गाथाओं का अन्तिम पद उत्तरोत्तर गाथाओं का आदि पद है। अर्थात् जिस पद का आदान ( ग्रहण) प्रथम गाथा के अन्त में है, उसी पद का आदान दूसरी गाथा के प्रारम्भ में है। अतः इसका 'आदान' नाम सार्थक है । '
वृत्तिकार के अनुसार कुछ लोग इसे संकलिका अथवा श्रृंखला से अभिहित करते है। चूँकि इस अध्ययन में पूर्व गाथा का अन्तिम पद एवं उत्तर गाथा का आदि पद श्रृंखला की भाँति जुड़ा हुआ है अर्थात् दोनों की कड़ियाँ एक समान है अत: इसका नाम संकलिका अथवा श्रृंखला है।
इस अध्ययन के आदि में 'जं अतीतं' शब्द प्रयुक्त हुआ है, इसलिये भी इसका नाम जमतीत हो सकता है अथवा इसमें यमक अलंकार का प्रयोग होने से भी इस अध्ययन का नाम यमकीय है, जिसका आर्ष प्राकृत रूप 'जमईय' या 'जमतीत' होता है ।
ग्रन्थ मुक्त होने पर साधु आयत (विशाल) चारित्र से सम्पन्न होता है । वह साधक चारित्र से कैसे सम्पन्न होता है, यही इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है। नियुक्तिकार' ने आदान शब्द के चार निक्षेप किये है। द्रव्य आदान में धन ग्रहण किया जाता है, क्योंकि संसारी लोगों द्वारा अन्य समस्त कार्यों को छोड़कर अत्यन्त क्लेश- कषाय से सर्वप्रथम धन ग्रहण किया जाता है। अथवा उस धन से द्विपद, चतुष्पद आदि को ग्रहण किया जाता है। भाव आदान के दो प्रकार हैप्रशस्त और अप्रशस्त । मिथ्यात्व, अविरति या क्रोध के उदय से कर्मबंध का आदान अप्रशस्त भाव - आदान है । उत्तरोत्तर गुणश्रेणी द्वारा शुद्ध अध्यवसायों को ग्रहण करना या सम्यग्ज्ञान - दर्शन - चारित्र को ग्रहण करना प्रशस्त भाव आदान है।
इस अध्ययन में प्रशस्त भाव आदान की विवक्षा की गयी है, जिसमें कुल 25 गाथाएँ है, जो यमकालंकार से युक्त तथा श्रृंखलावत् सदृशपदों से जुड़ी हुई है। शास्त्रकार प्रारम्भिक गाथाओं में, तीर्थंकर या अनुत्तरज्ञानी ही इसके प्रवक्ता है, इसका स्वरूप समझाते हुये कहते है कि वे समस्त पदार्थों के त्रिकाल ज्ञाता है क्योंकि उन्होंने घाती कर्मचतुष्टय का सर्वथा क्षय कर लिया है। वे संशयादि मिथ्याज्ञान से पूर्ण मुक्त है, इसीलिए वस्तु तत्त्व का वे जैसा प्रतिपादन करते है, 168 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org