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सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 115
सूत्रकृतांग सूत्र - 1/11/7-11
सूत्रकृतांग सूत्र - 1/11/16-21
भगवती सूत्र - 2108/ उद्दे - 6 / सू. 331 की टीका
12. समवसरण अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र के द्वादश अध्ययन का नाम समवसरण है। यहाँ समवसरण का अर्थ देवकृत समवसरण या समोसरण (तीर्थंकर की 12 पर्षदा रूप धर्मसभा) नहीं है।
समवसरण शब्द के पर्यायवाची कुछ शब्द है', जैसे- एकत्र, मिलन, मेला, समुदाय, साधु समुदाय, विशिष्ट अवसरों पर अनेक साधुओं के एकत्रित होने का स्थान, तीर्थंकर की परीषद, धर्म- विचार, आगम-विचार, आगमन आदि ।
नियुक्तिकार ने' समवसरण का अर्थ 'सम्यक् एकीभाव से एक जगह एकत्र होना' किया है। सम्मेलन, संगम अथवा मिलन होना समवसरण है । वृत्तिकार ने भी इसी अर्थ का समर्थन किया है। चूर्णिकार' के अनुसार जहाँ अनेक दृष्टियों या दर्शनों का मिलन होता है, उसे समवसरण कहते है ।
समवसरण शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है- सम् तथा अव् उपसर्ग पूर्वक सृ धातु को भाववाचक संज्ञा के लिये प्रयुक्त ल्युट् (अनट्) प्रत्यय लगने पर 'समवसरण' शब्द सिद्ध होता है, जिसका अर्थ है - सम्यक्तया एक स्थान पर एकत्र होना ।
नियुक्तिकार ने समवसरण के भी नामादि 6 निक्षेप किये है। नाम, स्थापना सुगम है । द्रव्य समवसरण के सचित्त, अचित्त तथा मिश्र की अपेक्षा से तीन भेद है
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सचित्त-द्रव्यसमवसरण - इसके भी तीन भेद है - द्विपद, चतुष्पद और अपद । (अ) जहाँ तीर्थंकरों के जन्म, दीक्षा के प्रदेश विशेष में साधु आदि का मिलाप हो, वह (तीर्थ प्रदेश) द्विपद द्रव्य समवसरण है । (ब) जहाँ गाय आदि चतुष्पद प्राणी पानी पीने के स्थान पर एकत्र होते हो, वह चतुष्पद द्रव्य समवसरण है।
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(स) अपद (वृक्षादि) का स्वतः समवसरण नहीं होता । अचित्त-द्रव्यसमवसरण - लोहा, सूखी लकड़ी आदि अचित्त पदार्थों
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156 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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