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________________ का वर्णन बारहवें समवसरण अध्ययन में किया जायेगा। नियुक्तिकार ने द्रव्यमार्ग के चार अन्य विकल्प प्रस्तुत किये है। 1. क्षेम-क्षेम रूप - सिंह, चोर आदि के उपद्रव से रहित तथा वृक्षादि से आच्छन्न। 2. क्षेम-अक्षेम रूप - उपरोक्त उपद्रवों से रहित परन्तु पथरीला, कण्टकाकीर्ण मार्ग। 3. अक्षेम-क्षेम रूप - उपरोक्त उपद्रव से व्याप्त परन्तु जलाशय, फल फूल-छाया से युक्त। 4. अक्षेम-अक्षेम रूप - सिंहादि उपद्रव से युक्त तथा पथरीला और उबड़-खाबड़ मार्ग। भावमार्ग के भी चार विकल्प होते है। ये चारों भंग साधक की दृष्टि से घटित होते है 1. क्षेम-क्षेम रूप - जो साधक (आन्तरिक) संयम के गुण तथा ज्ञानादि से युक्त है तथा (बाह्य) द्रव्य लिंग से भी युक्त है। 2. क्षेम-अक्षेम रूप - जो साधक संयमी गुणों से तो युक्त है पर द्रव्यलिंग से रहित है। 3. अक्षेम-क्षेम रूप - जो साधक ज्ञान तथा संयम गुणों से अयुक्त है पर द्रव्यलिंग सहित है - जैसे निह्नव। 4. अक्षेम-अक्षेम रूप - परतीर्थिक तथा गृहस्थ। प्रथम विकल्प रूप प्रशस्त भावमार्ग ही साधक के लिये उपादेय है। यह प्रशस्त मार्ग चूंकि तीर्थंकरों, गणधरों द्वारा प्रणीत एवं यथार्थ वस्तु स्वरूप का प्रतिपादक है, अत: यही सत्य या सम्यग्मार्ग है। इसके विपरीत चरक, परिव्राजकों द्वारा आचीर्ण मार्ग अज्ञानमूलक होने से मिथ्या एवं अप्रशस्त है। इसी प्रकार षट्जीवनिकाय का घात करने वाला, ऋद्धि, रस तथा शाता रूप गारवत्रय का सेवन करने वाला, आधाकर्मी आहारभोजी, स्वयूथिक, पार्श्वस्थ साधु भी कुमार्ग पर ही है। परन्तु जो द्वादशविध तप, सत्रहविध संयम, अष्टादशसहस्र शील के भेद तथा नवतत्त्व से युक्त है, वह मार्ग मंगलकारी, क्षेमकारी, आत्महितकारी होने से प्रशस्त भावमार्ग है। नियुक्तिकार ने इस प्रशस्त भावमार्ग के एकार्थक 13 शब्दों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - पंथ, मार्ग, न्याय, विधि, धृति, सुगति, हित, सुख, सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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