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ज्ञान समाधि के कारण साधक ज्यों-ज्यों नये श्रुत और शास्त्र का अवगाहन करता है, त्यों-त्यों श्रद्धा से परम आल्हादित होता हुआ वह ज्ञान रूप भावसमाधि में स्थितप्रज्ञ हो जाता है। जो साधक दर्शन समाधि में स्थित है, वह जिन वचनों से आप्लावित, भावित अन्त:करण वाला निर्वात स्थान में स्थित दीपक के समान कुबुद्धि रूपी वायु से भ्रमित नहीं होता। ___चारित्र समाधि में स्थित मुनि विषयसुख से निस्पृह होने से निष्किंचन भाव से परमसमाधि को उपलब्ध होता है। इसी प्रकार उत्कृष्ट तप से मुनि को न ग्लानि होती है, न क्षुधा, तृषा आदि परीषह उद्विग्न करते है। इस प्रकार इन चतुर्विध समाधि से युक्त मुनि सम्यक् चारित्र में स्थित होता है। ___ दशवैकालिक सूत्र में विनय समाधि, श्रुत समाधि, तप: समाधि और आचार समाधि- इन चतुर्विध समाधियों का वर्णन है।'
सन्दर्भ एवं टिप्पणी पाइअसद्दमहण्णवो पृ. - 870 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 186 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 103-106 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 186-187 दशवैकालिक सूत्र., 9/4
11. मार्ग अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के एकादश अध्ययन का नाम 'मार्ग' है। मार्ग शब्द का सामान्य अर्थ पथ अथवा रास्ता है। परन्तु इस अध्ययन में उस मार्ग की विवक्षा की गयी है, जिस पर गतिमान होकर साधक मोक्षरूपी मंजिल को प्राप्त करता
नियुक्तिकार ने मार्ग शब्द के 6 निक्षेप किये है - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव।
नाम - स्थापना सुगम है। द्रव्य मार्ग के चौदह प्रकार है - 1. फलक मार्ग - तख्ते बिछाकर बनाया हुआ रास्ता। 2. लता मार्ग - बेल की तरह पकड़कर पार किया जाने वाला रास्ता।
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 151
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