________________
10. समाधि अध्ययन
सूत्रकृतांग सूत्र के दशम अध्ययन का नाम समाधि है । 'समाधि' शब्द चित्त की स्वस्थता, सात्विक सुख-शान्ति, सन्तुष्टि, मनोदशा का अभाव, आनन्द, प्रमोद, शुभध्यान, चित्त की एकाग्रता रूप ध्यानावस्था, समता, रागादि से निवृत्ति, आत्मप्रसन्नता आदि अर्थों में प्रयुक्त है । '
वृत्तिकार ने समाधि की परिभाषा इस प्रकार की है - जिस धर्म, ध्यान, श्रुत, आचार आदि की साधना द्वारा आत्मा को मोक्षमार्ग में सम्यक्तया प्रस्थापित या व्यवस्थापित किया जाता है, वह समाधि है । '
पूर्वोक्त 'धर्म' की साधना तभी की जा सकती है, जब आत्मा में प्रसन्नता तथा चित्त में अविकल समाधि हो। इसी कारण धर्म के पश्चात् प्रस्तुत अध्ययन में समाधि का अधिकार विवक्षित किया गया है।
1. नाम समाधि- किसी का नाम समाधि रखना, नाम समाधि है । 2. स्थापना समाधि - किसी वस्तु में समाधि स्थापना करना, स्थापना
समाधि है ।
3. द्रव्य समाधि - चार प्रकार की है
(अ) पाँचों इन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों में होनेवाली तुष्टि ।
(ब) परस्पर अविरोधी दो द्रव्यों या अनेक द्रव्यों के सम्मिश्रण से रसोपघात
( विकृत) न होकर जो रसपुष्टि होती है ।
(स) जिस द्रव्य के खाने या पीने से जो समाधि होती है ।
-
(द) तुला पर रखे गये द्रव्य से पलड़ा जब समानता को प्राप्त हो । इन चारों प्रकारों से द्रव्य समाधि होती है । 4. क्षेत्र समाधि
जीव को समाधि प्राप्त हो, वह क्षेत्र समाधि है ।
5. काल समाधि जिस काल में जिस जीव को समाधि हो, वह उसके लिये काल समाधि है । जैसे- शरद् ऋतु में गाय, रात्रि में उल्लू तथा दिन में कौए को समाधि का अनुभव होता है।
6. भावसमाधि - भावसमाधि दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा तप के भेद से चार प्रकार की है। जिसने सम्यक् चारित्र में अपने आपको पूर्णतया स्थापित कर दिया है, वह चारों भाव समाधियों से युक्त समाहितात्मा कहलाता है ।
-
Jain Education International
क्षेत्र की प्रधानता से अथवा जिस क्षेत्र में रहने से
150 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org