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अ. आहार -
दूधादि, जिससे शरीर में स्फूर्ति तथा शक्ति का संचार होता
ब. आवरण - कवच, ढाल आदि शस्त्रों के प्रहार को झेलने की शक्ति आवरण
वीर्य है। प. प्रावरण - शस्त्रास्त्रों की प्रहार शक्ति प्रावरण वीर्य है। १. क्षेत्र वीर्य - जिस क्षेत्र में जो वीर्य है, जैसे- देवकुरू आदि क्षेत्रों में समस्त
पदार्थ उस क्षेत्र के प्रभाव से उत्तम वीर्यवान होते है। अत: वह क्षेत्र वीर्य है। या जिस क्षेत्र का जो वीर्य है, वह भी क्षेत्रवीर्य
है।
5. काल वीर्य - एकान्त सुषमा नामक प्रथम आरा कालवीर्य है। अथवा जिस
. 2 काल में जो-जो वस्तु वीर्य को बढ़ाती है, वह कालवीर्य है। 6. भाव वीर्य - शक्ति युक्त जीव की वीर्य के विषय में अनेक लब्धियाँ है, जैसे
छाती का वीर्य, इन्द्रिय वीर्य, शरीर वीर्य, आध्यात्मिक वीर्य आदि अनेक प्रकार का वीर्य होता है। मनोवर्गणा के पुद्गलों को मन रूप में, भाषा के पुद्गलों को भाषा रूप में, काययोग्य पुद्गलों को काया के रूप में, श्वासोच्छ्वास योग्य पुद्गलों को श्वासोच्छ्वास रूप में परिणत करना क्रमश: मनोवीर्य, वाग्वीर्य, कायवीर्य, श्वासोच्छ्वास वीर्य कहलाता है। इन सभी
के सम्भव व सम्भाव्य ये दो भेद होते है। नियुक्तिकार ने आध्यात्मिक वीर्य के 10 प्रकार बताए है - 1. उद्यम - ज्ञानोपार्जन, तपश्चरण आदि में उत्साह । 2. धृति - संयम में स्थिर बुद्धि। 3. धीरत्व - परिषहों तथा उपसर्गों में अचल, अक्षोभ रहना। 4. शौण्डिर्य - त्याग करने का उत्कट सामर्थ्य । जैसे- चक्रवर्ती का मन अपने
षट्खण्ड राज्य को छोड़ते समय भी कम्पित नहीं होता।
आपदाओं में अविषण्णता। 5. क्षमावीर्य - अन्यों के आक्रोशपूर्ण व्यवहार से जरा भी क्षोभित न होना । 6. गाम्भीर्य - परीषह तथा उपसर्गों से न दबना। 7. उपयोगवीर्य - आठ प्रकार के साकारोपयोग तथा आठ प्रकार के
अनाकारोपयोग से द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव रूप विषयों को
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 145
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