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सन्दर्भ एवं टिप्पणी (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 86-87 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 153 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 88-89 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 154 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 90 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 154 (अ) सूत्रकृतांग सूत्र - 1/7/1-4 (ब) दसवेआलियं, 4/9 टि. 22-29 सूत्रकृतांग सूत्र - 1/7/5-7 (अ) सूत्रकृतांग सूत्र - 1/7/13 (च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 160 : तथा ते मूढाः मद्यमांसं लशुनादिकं च मुक्त्वा अन्यत्र 'मोक्षादन्यत्र' संसारे वासम परिकल्पयन्ति।
8. वीर्य अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के अष्टम अध्ययन का नाम 'वीर्य' है। 'वीर्य' के अनेक पर्यायवाची शब्द है, जैसे - बल, पराक्रम, शक्ति, सामर्थ्य, शक्ति, आत्मबल, तेज तथा शरीर में स्थित एक प्रकार का धातु आदि।' इस अध्ययन के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें सभी प्रकार केवीर्य अर्थात् पराक्रम या बल का वर्णन है।
चेतन तथा अचेतन, वीर्यवान होते है, परंतु द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के आधार पर उनमें शक्तियां अभियक्त होती हैं, या न्यूनाधिक होती हैं।
नियुक्तिकार ने वीर्य शब्द के 6 निक्षेप किये है - नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव । नाम, स्थापना सहजगम्य है। द्रव्य वीर्य के भी तीन भेद है - सचित्त द्रव्य वीर्य, अचित्त द्रव्य वीर्य तथा मिश्र द्रव्य वीर्य । सचित्त द्रव्य वीर्य के पुन: तीन भेद है - अ. द्विपद - तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि का बल। ब. चतुष्पद - अश्वरत्न, हस्तिरत्न, आदि का बल । स. अपद - गोशीर्षचन्दनादि का शीत-उष्णकाल में उष्ण-शीतवीर्य
परिणाम। अचित्त द्रव्य वीर्य भी तीन प्रकार का है - 144 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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