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________________ प्रस्तुत अध्ययन की उपान्त्य गाथा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। 'श्रमण महावीर ने स्त्री-सम्पर्क तथा रात्रिभोजन का वर्जन किया।' इस कथन से यह ध्वनित होता है कि महावीर से.पूर्व चातुर्याम की परम्परा प्रचलित थी, जिसके प्रवर्तक थे पार्श्व । भगवान महावीर ने चातुर्याम की परम्परा को बदलकर पंचमहाव्रतों की परम्परा का प्रचलन किया। उसमें परिग्रह विरमण महाव्रत का विस्तार कर ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह- इन दो स्वतन्त्र महाव्रतों की स्थापना की। सन्दर्भ एवं टिप्पणी समवाओ, 16/1 दशाश्रुतस्कन्ध, पयूषणा नामक अष्ठम अध्ययन प्रथमाधिकार (क) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 83 (ख) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 142 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 141 वही, पृ. - 141 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 84 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 143 सूयगडो- 1/16, पृ. 183 महाभारत, सभापर्व 32/3 7. कुशील परिभाषित अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र के सप्तम अध्ययन का नाम कुशील परिभाषित या कुशील परिभाषा है। शील शब्द अनेकार्थक है- स्वभाव, आचार, व्यवहार, अनुष्ठान, ब्रह्मचर्य आदि। पूर्वोक्त अध्ययन में परम सुशील महापुरुष महावीर की चर्या, ज्ञान, ध्यान, तप, त्याग आदि विशिष्ट गुणावलि की प्रशस्ति की गई। प्रस्तुत अध्ययन में इससे विरोधी आचार वाले कुशील तथा उनकी मिथ्या मान्यताओं का प्ररूपण तथा खण्डन होने से इस अध्ययन का नाम कुशील है। इस अध्ययन के उद्देशाधिकार में इसका एक ही उद्देशक है, जो 30 गाथाओं में ग्रथित है। अर्थाधिकार में उन कुतीर्थिक, स्वयूथिक, पार्श्वस्थ कुशीलों की ओर संकेत किया गया है, जो सदाचार, सद्विचार, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य से सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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