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(ख) मिश्रद्रव्य औषधि का वीर्य
2. क्षेत्रवीर - जो अपने क्षेत्र में अद्भुत पराक्रमी है, वह क्षेत्रवीर है। 3. कालवीर - जो अपने समय या काल में अपूर्व प्रभावशाली होता है अथवा जो काल (मृत्यु) पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह कालवीर है ।
4. भाववीर - क्षायिक वीर्य से सम्पन्न व्यक्ति, जिसने क्रोधादि कषायों एवं परीषों पर विजय प्राप्त कर ली है, वह भाववीर है ।
प्रस्तुत अध्ययन में भाववीर ही विवक्षित है, क्योंकि वर्धमान महावीर अनुकूल-प्रतिकूल आदि समस्त परीषहों तथा उपसर्गों से अपराजित है, अत: महावीर शब्द व्यक्ति वाचक होने पर भी वीरता के गुणों से युक्त होने के कारण यहाँ गुणवाचक है।
नियुक्तिकार ने स्तुति शब्द के भी चार निक्षेप किये है। नाम तथा स्थापना प्रसिद्ध है। आभूषण, पुष्पमाला, चन्दन आदि सचित्त - अचित्त द्रव्यों द्वारा जो स्तुति की जाती है, वह द्रव्य स्तुति है तथा विद्यमान गुणों का कीर्तन - करना भाव स्तुति है।'
-स्तवन
प्रस्तुत अध्ययन में जम्बूस्वामी द्वारा पूछे जाने पर सुधर्म गणधर ने श्रमण भगवान महावीर के महिमामण्डित भगवद् स्वरूप का अनेक श्रेष्ठताओं द्वारा वर्णन किया है, जिससे हमें उनके विराट् स्वरूप का सहज ही ज्ञान हो जाता है।
वे ज्ञातपुत्र महावीर संसार के प्राणियों के दुःखों के ज्ञाता होने से खेदज्ञ, अष्टविध कर्म विदारण में कुशल, आशुप्रज्ञ, निरामगंधी, अनन्तज्ञानी, अनन्तदर्शी, धृतिमान, भूतिप्रज्ञ, अप्रतिबद्ध विहारी है। सूर्य की भांति अनुपम प्रभास्वर, वैरोचनेन्द्र (प्रदीप्त अग्नि) की भाँति अंधकार में प्रकाश करनेवाले, ऋषभादि जिनवरों के अनुत्तर धर्म के नेता, सहस्त्र देवों से भी अधिक प्रभावशाली है। स्वयंभूरमण समुद्र के समान प्रज्ञा से अनन्त पार, समुद्रजल की भाँति परम निर्मल ज्ञान युक्त, कषायों से सर्वथा रहित है ।
पूर्वोक्त विशेषणों में भगवान को खेदज्ञ, धृतिमान्, भूतिप्रज्ञ, निरामगंधी, स्थितप्रज्ञ आदि विशिष्टताओं से युक्त बताया गया है । खेदज्ञ अर्थात् जो क्षेत्र (आकाश) को जानने वाले है। आकाश में लोक तथा अलोक दोनों का समावेश होने से वे लोकालोक के ज्ञाता है। सुख-दुःख आदि को समतापूर्वक सहन करने धृतिमान है । भूतिप्रज्ञ का तात्पर्य है कि जो विश्वहितकरी, मंगलमयी विशिष्ट बुद्धि से युक्त है। इसी प्रज्ञा के कारण परमात्मा प्राणी मात्र के कल्याण
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 137
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