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ऊँचा आकाशस्थ पर्वत, जो सदा अतिगर्म रहता है, उस पर उन्हें चिरकाल तक मारा-पीटा जाता है।
इन समस्त यातनाओं को भोगते हुये तथा नरकपालों द्वारा टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाने पर भी ये नारक पून:-पुन: जीवन पा जाते है। इसलिये इसी उद्देशक में नरक को संजीवनी भी कहा गया है।" संजीवनी वह औषधि है, जो मरते हुये मनुष्य को जीवन प्रदान करती है। नरक भी संजीवनी है क्योंकि वह भी प्राणघातक यातना देने पर भी आयुष्य शेष होने से नारकों को पुन: जीवन प्रदान कर देती है।
बौद्ध परम्परा के आठवें नरक 'संजीव' का वर्णन भी उपरोक्त वर्णन की तरह ही है। संजीव नरक में पहले शरीर भग्न होते है, फिर रजःकण जितने सुक्ष्म हो जाते है। पश्चात् शीतल वायु से वे पून: सचेतन हो जाते है।20
अन्तिम गाथाओं में यह बताया गया है कि नरक में वे ही जीव आते है, जो जन्मान्तर में तीव्र पापकर्म का उपार्जन करते है।
वस्तुत: यह अध्ययन अठारह पापों के आचरण के प्रति विरक्ति पैदा करता है। सूत्रकार के अनुसार नारकीय वेदना से मुक्त होने के उपाय है -
1. हिंसा निवृत्ति, 2. सत्य का आचरण, 3. असंग्रह का पालन, 4. कषायनिग्रह, 5. अठारह पापों से निवृत्ति, 6. चारित्र का अनुपालन ।।
- सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग चूर्णि. पृ. - 136 जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग - 1 पृ. - 146 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 25 ठाणं, 4/6 तत्त्वार्थ सूत्र, 6/15 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 64-65 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 121-122 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 66 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 122
ठाणं, 7/23-24 ___ वही, 7/14-22
(अ) तत्वार्थ सूत्र, 3/4
(च) सवार्थ सिद्धि, अ. 3, पृ. 156 134 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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