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है। देह का प्रमाण तथा विक्रिया शक्ति भी क्रमश: अधिकतर होती है।" नरकवासियों की उत्कृष्ट स्थिति क्रमश: 1, 3, 7, 10, 17, 22 तथा 33 सागरोपम है।" नारकीय जीव नरकावासों में तीन प्रकार की वेदना का अनुभव करते है- ( 1 ) क्षेत्रविपाकी, (2) परस्परकृत तथा (3) असुरकृत ।
क्षेत्रविपाकी वेदना - नारकीय प्राणी नरकावासों में तीव्र वेदना को उत्पन्न करनेवाले पृथ्वी के स्पर्श का अनुभव करते है । यह क्षेत्रजनित वेदना दूसरों के द्वारा अचिकित्स्य होती है। उनके भयंकर रूप, भौंडा शरीर, असह्य दुर्गन्ध, कटु तथा तिक्त रस, भयावनी चित्कार से उत्पन्न दारूण दुःख को कोई देव चाहे तो भी शान्त करने में समर्थ नहीं है । 12
परस्परकृत वेदना - वे नारक एक दूसरे के द्वेष का स्मरण कर प्रतिशोध की आग में जलते हुये परस्पर कुत्तों एवं गीदड़ की तरह लड़ते है। अपनी विक्रिया शक्ति द्वारा तलवार, भाला, फरसा आदि नाना प्रकार के शस्त्रों की विकुर्वणा करके तथा अपने हाथ, पैर, दाँत और नखों से छेदन, भेदन, कर्तन, तक्षण आदि से परस्पर तीव्र दु:ख और वेदना उत्पन्न करते है ।
असुरकृत वेदना - तृतीय प्रकार का दुःख नरकपाल अर्थात् परमाधार्मिक असुरों द्वारा दिया जाता है। ये पन्द्रह प्रकार के असुर स्वभाव से क्रुर, रौद्र, संक्लिष्ट परिणाम वाले, नारक जीवों को परस्पर लड़ाने वाले, छेदन, भेदन तथा दहन करने में आनन्द मनाने वाले होते है। नियुक्तिकार ने पनरह प्रकार के नरक़पालों का नामोल्लेख करते हुए उनके कार्यकलापों का भी निर्देश किया है, जिसका वृत्तिकार विस्तार से वर्णन किया है। 3
ये नरकपाल नारकों को मुद्गर, भाले आदि से मारते हुये, आरी और करवत से नारकों के अंग प्रत्यंग, गुप्तांग तथा कोमल स्थानों को छिन्न-भिन्न करते हुये, भट्टी में चने की तरह भुनते हुये, तेल की कड़ाही में तलते हुये, खून, मवाद, माँस, अस्थियों से भरी वैतरणी नदी में बहाते हुए परम आनन्द का अनुभव करते है। प्रथम तीन नरकों में उपरोक्त तीनों प्रकार की वेदनाएँ प्राप्त होती है। शेष चार नरक भूमियों में क्षेत्रजनित तथा परस्परजनित वेदना ही है। नारक जीव अपने पापजनित दुःखों को भोगे बिना वहाँ से छुटकारा नहीं पा सकते, क्योंकि नरकायुष्य अनपवर्तनीय होने से नारकों की अकाल मृत्यु नहीं होती ।
स्थानागं सूत्र में नारकीय जीवों द्वारा भोगी जानेवाली दस प्रकार की वेदना का उल्लेख है ' ' - ( 1 ) शीत, (2) उष्ण, (3) क्षुधा, (4) पिपासा, (5) खुजलाहट,
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130 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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