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. 1. नाम नरक - किसी का नाम नरक रखना नाम नरक है।
2. स्थापना नरक - किसी पदार्थ में नरक की स्थापना करना, स्थापना नरक है।
3. द्रव्य नरक - द्रव्य नरक के दो भेद है - आगमत: तथा नोआगमत:। जो नरक का ज्ञाता हो पर उसमें उपयोग न रखता हो, वह आगमत: द्रव्य नरक है। नोआगमत: द्रव्य नरक वे जीव है, जो इसी लोक में मनुष्य या तिर्यंच जीवन में बन्दीगृह, अनिष्ट परिवार अथवा यातना स्थान में नरक के समान ही कष्ट पाते
... द्रव्य नरक के अन्य अपेक्षा से दो भेद है।
(अ) कर्मद्रव्य-द्रव्यनरक - नरक में वेदने योग्य कर्म-बंध।
(ब) नोकर्मद्रव्य-द्रव्यनरक - वर्तमान जीवन में अशुभ रूप, रस, गंध, वर्ण, शब्द और स्पर्श का संयोग ।
4. क्षेत्र नरक - काल, महाकाल, आदि 84 लाख विशिष्ट भू-भाग क्षेत्र नरक है।
5. काल नरक - जिस नरक में नारकों की जितनी स्थिति है, वह काल नरक है।
6. भाव नरक - नरक में स्थित या नरकायुष्य के उदय से उत्पन्न अशातावेदनीय कर्म के उदय वाले जीव भाव-नरक कहे जाते है।
नियुक्तिकार ने 'विभक्ति' पद के भी नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव ये छह निक्षेप किये है।' ___ स्थानांग में नरकों के सात नाम और गोत्रों का उल्लेख है। धम्मा, वंशा, शैली, अंजना, रिष्टा, मघा और माघवती ये सात नरक है ।'
नरकों के गोत्र - रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रमा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा, महातमप्रभा।
अधोलोक में सात पृथिवियाँ है। इन पृथिवियों (नरकों) के एक-दूसरे के अन्तराल में सात तनुवात (पतलीवायु) और सात अवकाशान्तर है। इन अवकाशान्तरों पर तनुवात, तनुवातों पर घनवात, घनवातों पर घनोदधि और इन सात घनोदधियों पर फूल की टोकरी की भाँति चौड़ी संस्थान वाली पृथिवियाँ है।'
यहाँ रहने वाले नारकी जीवों की लेश्या, परिणाम, देह तथा वेदना आदि उत्तरोत्तर अशुभ, अशुभतर, अशुभतम और असह्य, असह्यतर, असह्यतम होती
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 129
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