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________________ भाव स्त्री है तथा जो स्त्रीवेद रूप वस्तु में उपयोग रखता है अथवा स्त्रीवेदोदय प्राप्त कर्मों में उपयोग रखता है, वह नो आगमत: भावस्त्री है। नियुक्तिकार ने स्त्री के विपक्षभूत पुरुष शब्द के भी 10 निक्षेप किये है, जिसका चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने विशद् वर्णन किया है - 1. नाम पुरुष - नाम का अर्थ है संज्ञा । जिनकी संज्ञा पुल्लिंग हो, जैसेघट, पट आदि। अथवा जो संज्ञा मात्र से पुरुष है, वह नाम पुरुष है। 2. स्थापना पुरुष - लकड़ी आदि की बनायी हुई प्रतिमा में किसी का आरोपण कर देना स्थापना पुरुष है। जैसे- यह महावीर की प्रतिमा है। 3. द्रव्य पुरुष - जो द्रव्य (धन) में अत्यन्त आसक्त है, ऐसा धन प्रधान पुरुष, जैसे- मम्मण सेठ आदि। 4. क्षेत्र पूरुष - क्षेत्र से संबोधित होने वाला पुरुष, जैसे - सौराष्ट्रिक आदि। 5. काल पुरुष - जो जितने काल तक पुरुष वेद का अनुभव करता है। 6. प्रजनन पुरुष - जिसके केवल पुरुष का चिह्न (लिंग) है, किन्तु उसमें पुंस्त्व नहीं है, वह प्रजनन पुरुष है। 7. कर्म पुरुष - जो अत्यन्त पौरुष युक्त कार्य करता है। 8. भोग पुरुष - भोगप्रधान पुरुष, जैसे- चक्रवर्ति आदि। 9. गुण पुरुष - पुरुष के चार गुणों का उल्लेख चूर्णिकार ने किया है, व्यायाम, विक्रम, वीर्य तथा सत्व। 10. भाव पुरुष - पुरुष वेद के उदय का अनुभव करने वाला भाव पुरुष स्त्री परिज्ञा अध्ययन में चिह्न स्त्री, वेद स्त्री अर्थ ही विवक्षित है। नियुक्तिकार के अनुसार प्रस्तुत अध्ययन में दो उद्देशक है। प्रथम उद्देशक में 31 तथा द्वितीय उद्देशक में 22 गाथाएँ है। प्रथम उद्देशक का प्रतिपाद्य है - स्त्रियों के साथ संस्तव तथा संलाप करने से शील की स्खलना होती है। दूसरे उद्देशक में स्खलित व्यक्ति की इसी जन्म में होने वाली दुर्दशा तथा कर्मबन्धन का विवेचन है। स्त्री परवशता बड़े से बड़े बलवान को भी पराजित कर देती है। नियुक्तिकार ने इसी क्रम में तीन बलों के तीन दृष्टान्त प्रस्तुत किये है। बुद्धि बल, शारीरिक बल तथा तपोबल । जो व्यक्ति इन बलों से युक्त होते है, वे भी स्त्री के वश होकर नष्ट भ्रष्ट हो जाते है, जैसे - 124 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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