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2. प्रत्याख्यान परिज्ञा द्वारा उसका सम्यक् स्वरूप जानकर मोह - ममत्व का परित्याग करना ।
चूँकि इस अध्ययन में स्त्रियों के स्वरूप को जानकर उससे विरक्त होने का सन्देश है, अत: इस अध्ययन का स्त्रीपरिज्ञा नाम सार्थक है।
पूर्वोक्त अध्ययन में अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्गों के प्रकार तथा उनको सहने के उपाय निर्दिष्ट थे । अनुकूल उपसर्गों को सहना कठिन होता है। उनमें भी स्त्रियों द्वारा उत्पादित उपसर्ग अत्यन्त दु:सह, दुर्जेय और दुस्तीर्ण होने से इस अध्ययन में साधक को स्त्रियों से पूर्णत: दूर रहते हुए कामविजयी होने का उपदेश दिया गया है ।
निर्युक्तिकार ने स्त्री शब्द के पाँच निक्षेप किये है-' द्रव्यस्त्री, अभिलापस्त्री, चिह्नस्त्री, वेदस्त्री तथा भावत्री ।
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1. द्रव्यस्त्री - द्रव्यस्त्री के दो भेद है। - आगमतः और नो अगमत: जो स्त्री पद के अर्थ को जानने वाला परन्तु उसके उपभोग से रहित है, वह आगमत: द्रव्यस्त्री है।
नो आगमतः द्रव्य स्त्री के तीन भेद है .
ज्ञशरीर, भव्यशरीर, ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त ।
ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य स्त्री के तीन भेद है।
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(अ) एकभविका - जो जीव एक भव पश्चात् स्त्री शरीर को प्राप्त करने वाला है।
(ब) बद्धायुष्का
जिसने स्त्री आयुष्य का बंध कर लिया है।
(स) अभिमुख नाम गोत्रा - जिस जीव के स्त्री नाम, गोत्र अभिमुख है। 2. अभिलापस्त्री - स्त्रीलिंगवाची शब्द, जैसे - सिद्धि, शाला, मालादि । 3. चिह्नस्त्री - चिह्न मात्र से जो स्त्री होती है, जैसे - स्तन, वस्त्र आदि । अथवा जो स्त्रीवेद से शून्य हो गया है, वैसा छद्मस्थ, केवली या अन्य कोई स्त्रीवेशधारी व्यक्ति ।
4. वेदस्त्री जिसे पुरुष समागम की अभिलाषा रूप स्त्रीवेद का उदय
हो ।
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5. भावस्त्री - स्त्रीवेद का अनुभव करनेवाली । इसके दो प्रकार है - आगमत: तथा नोआगमतः ।
जो स्त्री पदार्थ को जानता हुआ उसमें उपयोग रखता है, वह आगमतः
सूत्रकृतांग सूत्र का सर्वांगीण अध्ययन / 123
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