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होकर मोक्षप्राप्ति पर्यन्त संयम में पराक्रम करते है। अन्तिम गाथाद्वय (तृतीय उद्देशक के अन्त में भी यही दो गाथाएँ है) की पुनरावृत्ति के द्वारा शास्त्रकार ने इस बात पर विशेष बल दिया है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 45 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 45-48 (च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 77-78 (अ). सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 49-50 (च). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 78-79 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र. 79 सूयगडो, 1/3/4/1-4 (अ) सूत्रकृतांग सूत्र (जम्बूविजयजी) प्रस्तावना पृ. - 15 (ब) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 96 (स) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 96 (अ) इसिभासियाई अ. 38, पृ. - 85 (ब) सूडगडांग सूत्र (जम्बू विजयजी) प्रस्तावना पृ. - 16 (स) सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 96 सूयगडो, 1/3/4/10-12 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 98 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 53/54/55 (च) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 99
4. स्त्री परिज्ञा अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र (प्र. श्रु.) के चतुर्थ अध्ययन का नाम इत्थि परिण्णा अर्थात् स्त्री परिज्ञा है।
स्त्री शब्द का अर्थ स्पष्ट है। परिज्ञा अर्थात् तद्विषयक समस्त पहलुओं का ज्ञान । स्त्री के हाव-भाव-स्वभाव आदि को सभी दृष्टियों से जानकर उनसे अपेक्षित दूरी बनाये रखना ही स्त्री परिज्ञा का भावार्थ है।
परिज्ञा शब्द से दो अर्थ ग्रहित होते है -
1. ज्ञ परिज्ञा द्वारा वस्तु तत्त्व का यथार्थ ज्ञान करना। 122 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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