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का भी प्रमाद न करते हुए इस जन्म में सायास संबोध को प्राप्त जाये क्योंकि अन्य गतियों में अतिसुख अथवा अतिदु:ख रूपी स्थितियाँ होने से बोधि प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है। जो हाथ में आये अवसर को खो देता है, वह संसार रूपी महासागर में अनन्तकाल तक भटकता रहता है।
___ यह उपदेश भगवान ऋषभदेव ने अपने 98 पुत्रों को जागृत करने के लिये दिया था और यही उपदेश ज्ञातपुत्र महावीर ने भी दिया है। इस प्रकार के वचन सुधर्मगणधर अपने शिष्य जम्बू से कहते है। ___इस प्रकार इस वैतालिय अध्ययन के परिशीलन से यह ज्ञात होता है कि इसमें मुख्य रूप से श्रमणधर्म को ही इंगित करते हुये उपदेश दिया गया है। भगवान द्वारा 98 पुत्रों को दिया गया संबोध समस्त प्राणियों की भाव निद्रा को तोड़ने में पूर्ण सक्षम है। इसमें निहित भाव शाश्वत है, जो सर्वकाल में सर्व तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित किये गये है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 38 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 53 (अ) सूत्रंकृतांग नियुक्ति गाथा - 36/37 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 53 (अ) सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 39 (ब) सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 54 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 40-41
____ 3. उपसर्ग परिज्ञा अध्ययन सूत्रकृतांग सूत्र (प्र. श्रु.) के तृतीय अध्ययन का नाम उपसर्ग परिज्ञा है। उपसर्ग का स्वरूप नियुक्तिकार इस प्रकार बताते है - 1
'आगंतुगो य पीलागरो य जो सो उवसग्गो।'
अर्थात् जो किसी देव, मनुष्य या तिर्यंच आदि अन्य पदार्थों द्वारा आता है और देह अथवा संयम को पीड़ित करता है, वह उपसर्ग है। इस परिभाषा से स्पष्ट है कि साधक के साधना काल में मनुष्य, देव या तिर्यंचकृत विघ्नों, कष्टों तथा बाधाओं को उपसर्ग कहा जाता है।
114 / सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक अध्ययन
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