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व संपादक मुनिद्वय श्री कल्याणबोधिविजय एवं संयमबोधिविजय है। 14. 'आगमगुण मंजुषा' नामक विराट्काय ग्रन्थ का सम्पादन आचार्य
गुणसागरसूरि ने किया है, जिसमें सूत्रकृतांग सहित पैंतालीस आगमों का मूलपाठ प्रकाशित है।
सन्दर्भ एवं टिप्पणी (अ) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू. - 88 (ब) नन्दी सूत्र - 80 (स) अनुयोगद्वार सूत्र - 50 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 2 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 2 (अ) सूतमुत्पन्न अर्थरूपतया तीर्थकृभ्यस्तत: कृतं ग्रन्थ रचनया गणधरैरिति। (ब) सूत्रानुसारेण तत्त्वबोधः क्रियते अस्मिन्निति सूत्रकृतम्। (स) स्वपर समयार्थ सूचनं सूचा, साऽस्मिन् कृतेति सूचाकृतम्। (अ) समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू. - 90 (ब) नन्दी सू. - 82 जै. सा. बृ. इ. भाग - 1 पृ. - 173 कषायपाहुड, भाग - 1 पृ. - 134 सूत्रकृतांग चूर्णि पृष्ठ - 3 : इह चरणाणुओगेण अधिकारी। सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 1: तत्राचाराङ्ग चरणकरणप्राधान्येन व्याख्यातम्, अधुनाअवसरायातंद्रव्यप्राधान्येन सूत्रकृताख्यं द्वितीयमङ्गव्याख्यातुमारभ्यत इति। समवायांग वृत्ति पत्र - 102, : चरणम् - व्रतश्रमण धर्म संयमाद्यनेकविद्यम्। करणम् - पिण्डविशुद्धि समित्याद्यनेकविद्यम्। सूत्रकृतांग चूर्णि - पृ. - 3 : कालिय सुयं चरणकरणाणुओगो, ......... दिडिवातो दव्वाणुजोगोत्ति। (अ). सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 18 (ब). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 6 (अ). सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा - 22 (ब). सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 8 History of Indian Lilerature, Part - II, Page - 441 सूत्रकृतांग नियुक्ति गाथा 142-143 सूत्रकृतांग चूर्णि पृ. - 308 सूत्रकृतांग वृत्ति पत्र - 267 : इहानन्तर श्रुतस्कन्धे योऽर्थः समासतोऽभिहित: असावेवानेन श्रुतस्कन्धेन सोपपत्तिको व्यासेन अभिधियते, त एव विधय: सुसंगृहीता सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 97
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