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6. पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल के प्रधान सम्पादकत्व में सूत्रकृतांग सूत्र के मूल पाठ का गुजराती अनुवाद हुआ है । 74
7. स्थानकवासी परम्परा की गोण्डलगच्छीय महासती उर्मिलाबाई ने भी सूत्रकृतांग सूत्र के दोनों श्रुतस्कन्ध का गुजराती अनुवाद किया है, जो दो भागों में प्रकाशित है।'' यह अनुवाद मूल, शब्दार्थ, भावार्थ व विवेचन सहित है, जो गुजराती भाषियों के अध्ययन में उपयोगी साबित होगा । 8. मुनि दीपरत्नसागरजी ने भी आगमदीप के प्रथम विभाग में आचार, सूत्रकृत, स्थान तथा समवाय इस आगमचतुष्क का गुर्जर छायानुवाद किया है, जोकि मूलपाठ सहित अतिसंक्षेप में है । "
अँग्रेजी अनुवाद
प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् हर्मन याकोबी ने सूत्रकृतांग सूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। पाश्चात्य विद्वान् द्वारा जैनदर्शन के महत्त्वपूर्ण दार्शनिक आगम-ग्रन्थ का आंग्ल भाषा में किया गया यह अनुवाद अपने आपमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।”
प्रकाशन
सूत्रकृतांग सूत्र के मूलपाठ, निर्युक्ति, चूर्णि तथा टीकाओं का सम्पादन प्रकाशन भी समय-समय पर होता है ।
1. सूत्रकृतांग सूत्र का भद्रबाहुकृत नियुक्ति व शीलांककृत वृत्ति सहित प्रकाशन वि. सं. 1973; ई.स. 1917 में आगमोदय समिति, मेहसाणा द्वारा हुआ है।
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2. भद्रबाहुकृत नियुक्ति व शीलांकवृत्ति सहित सूत्रकृतांग सूत्र का दो भागों में प्रकाशन जिनशासन आराधना ट्रस्ट, मुंबई द्वारा भी हुआ है। 3. सूत्रकृतांग सूत्र के मूलपाठ, निर्युक्ति व वृत्ति का नवीन प्रकाशन आगम श्रुत प्रकाशन के द्वारा आगम सुत्ताणि (सटीकं) भाग - 2 में हुआ है, जिसके संशोधक व संपादक मुनि दीपरत्न सागरजी है। इन्होंने अभिनव श्रुत प्रकाशन द्वारा लघु पुस्तिका के रूप में प्रकाशित 'सूयगडो' के मूलपाठ का भी संपादन किया है।
सूत्रकृतांग के मूलपाठ व नियुक्ति मात्र का प्रकाशन पूना द्वारा हुआ है, जिसके सम्पादक पी. एल वैद्य है ।
सूत्रकृतांग सूत्र का परिचय एवं उसका व्याख्या साहित्य / 95
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