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________________ ८३. अचलगच्छ का इतिहास १०५ १०५ सुणी चरित्र दीजे दान जे कीजे अतिथिसंविभाग रे। शीतिकण्ठ मिश्र, वही, भाग २, पृ० ४८७. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४०८. अंचलगच्छि श्रीधर्ममूर्तिसूरि सूरिसिरोमणि दीपइ, तस पाटि श्रीकल्याणसागर सूरि मयण महाभद्र जीपइ रे। संवत षट रस वाण (काय) निशाकर, कातिक वदि सोमवारि, पांचमि जोडि करी ओ रूडी, श्री भुज नगर मझारि रे। वाचक वंश सुहाकर मुणिवर, श्री विजयशील मुणिंद, तास सीस दयाशील पयंपइ वंदु इला मुनि चंद रे। इलाची मुनि ना गुण गांता, पातिक दूरि पलाइ, श्री चिंतामणि पास प्रसादिइं ऋद्धि वृद्धि थिर थाइ रे। इलाचीकेवलीरास की प्रशस्ति, शीतिकण्ठ मिश्र, वही, भाग २, पृ० २१६-१७. मुनि दयाशील द्वारा रची गयी शीलबत्तीसी (रचनाकाल वि०सं० १६६४/ ई०स० १६०८), चन्द्रसेन-प्रद्योत नाटकीयप्रबन्ध (रचनाकाल वि०सं० १६६७/ई०स० १६११) आदि कृतियां भी मिलती हैं। सोलह सय उगणोत्तरइ पुर जालोर मझारि, आसु सुदि दशमई कियउ, कथाबंध गुरुवारि। ८४. श्री अंचलगच्छ उदधि समान, संघरयण केरउ अहिठाण। उदयउतास श्रीगुरु कल्याणसागर सम गुणनांण, तासपक्षि महिमाभंडार, पंडित भीमरतन अणगार। तास विनेय विनयगुणगेह, उदयसमुद्र सुगुरु ससनेह, ताससीस आणंदिइ घणई, दयासागर वाचक.... इम भणइ। मदनराजर्षिरास की प्रशस्ति, शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ०२१७-१९. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय परिवर्धित संस्करण, सम्पा०- डॉ० जयन्तकोठारी, भाग ३, पृ० ९७-९९. वाचक दयासागरगणि ने मदनराजर्षिचरित की रचना अपने गुरुभाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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