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अचलगच्छ का इतिहास
७७.
७४. लघुपट्टावली, पृ० १४३. ७५-७६.वि०सं० १६७६ का वर्धमान शाह का लेख अंचलगच्छीयलेखसंग्रह,
लेखांक ३१०. लघुपट्टावली, पृ० १४३ और आगे
मुनि महोदयसागर, कल्याणसागरसूरि का जीवनचरित, पृ० १७०-७३. ७९. संवत् सोल पंच्योतरे रे, कारतिक मास मझारि रे,
सुद तेरस अति उजली रे, सोम सुतन भलोवार रे। विधिपक्ष गछ गुरु राजीओ रे, सोहे निर्मल नाण रे, दिन दिन महिमा दीपतो रे, जिम उदयाचले भांण रे।
७८.
तास पक्ष पंडितबरु रे, पुण्यमंदिर मुनिराय रे, विनइ तेहना वीनवे रे, उदयमंदिर धरी साय रे। रास रच्यो खंते करीरे, सेरवाटपुर मांहि रे, नरनारी जे सांभले रे, तस होई अधिक उछाहि रे।
शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० ४८. संवत सोल पंचाणुआ वरसि, आषाढ़ सुदि हरसि जी, श्री अंचलगछि विराजि, श्रीकल्याणसागर सूरिराजिजी।
८०.
वाचकवंस विभूषण वारु श्री देवसागर भवतारु जी तास सीस मनि भावि उत्तमचंद गुण गावि जी।
शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृ० ४७. संवत सोल संताणुइ पोस पुनिय दिनसार रे, चरित्र अह रचिउ मनरंगे रायधनपुर मझारि रे।
८१.
पण्डित गुणचंद्र वंदता पामीजे उछाह रे, सुगुरु अह तणे सुपसाये, भाख्यो जे अधिकार रे। विवेकचंद्र कहे भावे सुणता लहइ लाभ अपार रे।
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